Tuesday 9 June 2015

वर्षा रितु के आगमन पर



वर्षा अभी आई नहीं है केवल हल्की सी दस्तक ही दिये हैं कि कुमलहाए हुए मन मनसिज खिलने लगे हैं । काम ने अपना मायाजाल फैलाना शुरू कर दिया है । उम्र अपने बन्धन तोड़ने लगी है । पसीने की गन्ध,मिट्टी की सोंधी-सोंधी ख़ुशबू में मिलकर उसकी मादकता को द्विगणित करने लगी हैं । आम्र मंजरियों और पल्लवों के पीछे छिपकर काम ने,शिव को विचलित करने के लिए,(शब्द,स्पर्श,रूप,रस,गन्ध)के पॉच पुष्प बाण,अपने धनुष की प्रत्यंचा में चढ़ा लिए है । किसी भी समय उसकी प्रत्यंचा खिच सकती है और काम के ये अमोघ बाण आपको घायल कर सकते है । आपने इन बाणों से बचने की कोई तैयारी की है ? नहीं ! तो आपको कोई नहीं बचा सकता ।
शिव के पास तीसरा नेत्र होने के बाद भी इन बाणों ने,उनकी समाधि भंग करके,उन्हें विचलित तो कर ही दिया था । यह अलग बात है कि उन्होंने तीसरे नेत्र (ज्ञान) के द्वारा काम को जला दिया था और 'कामारि' कहलाए थे ।
सावन और भादौं दो ऐसे महीने होते हैं, जिसमें कामाग्नि जितनी ही तीव्र होती है, जठरागनि उतनी ही मंद होती है,इसीलिए हमारे पूर्वजों ने हमको शारीरिक अस्वस्थता से बचाने के लिए सावन में (कामारि) शिव की उपासना (जिसमें व्रत भी शामिल है),को विशेष फलदायक बताया है । यह दोनो महीने विशेष त्योहारों के हैं । रक्षाबन्धन भी इसमें ही पड़ता है । पहिले गृहणियाँ सावन के पूरे महीने,मायके में ही रहती थी और पति-पत्नी के दूर-दूर रहने के कारण दोनो पूर्ण स्वस्थ रहते थे ।महा-योगेश्वर कृष्ण का जनम भी अभी ही पड़ता है ।जन्माष्टमी का व्रत भी विशेष फलदायक है ।
हमारी संस्कृति की एक महत्वपूर्ण विशेषता,उसकी उत्सवधर्मिता है ।हम इन उत्सवों का पूर्ण आनन्द तभी ले सकते हैं,जब हम मानसिक और शारीरिक रूप से पूर्णत: स्वस्थ और प्रसन्न हो । आईए हम पूरी तैयारी के साथ वर्षा के झोंकों का और सावन के झूलों का आनन्द लें । मेघों के रसा वर्षण के रस में पूरी तरह डूब जाने का निमंत्रण,प्रकृति अपनी दोनों बॉंहे फैलाकर हमें दे रही है । आइए उसके आलिंगन में कुछ समय के लिए हम अपने अहं का तिरोहण कर, भार मुक्त हो जाएँ ।

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