Friday, 26 June 2015

"कखरी लरका गाँव गोहार"

"कखरी लरका गाँव गोहार"
यह बुन्देलखण्ड की एक लोक कहावत है । इसका अर्थ यह है कि मॉं अपने लड़के को कॉंख में दाबे है (गोद में लिए है) और गाँव भर में गोहार (चिल्लाती) घूम रही है कि उसका लड़का खो गया है, किसी ने देखा हो तो बता दे । इस कथा में यह आगे जोड़ दिया जाता है कि पूरा गाँव उसकी बेवक़ूफ़ी पर हँस रहा है कि तभी एक सज्जन व्यक्ति को दया आ जाती है और वह कहता है,"अरी नासमझ बच्चा तो तेरी गोद में है, तू ढूँढ किसे रही है ? मॉं गरदन नीचे झुकाती है और बच्चे को अपनी गोद में देखकर, उसकी भागदौड़ समाप्त हो जाती है, बेचैनी समाप्त हो जाती है और वह परमानन्द में डूब जाती है ।

हमारी जितनी भी लोक कथाएँ है, उन सब का एक शाब्दिक अर्थ तो होता ही है,उसके साथ-साथ, उनमें समाज के लिए एक सन्देश भी होता है । इस लोक कथा का सन्देश यह है कि हर मानव, आनन्द को बाहर ढूँढ रहा है, वह यह भूल गया है कि आनन्द ही उसका स्वरूप है, और वह उसके अन्दर ही है, कहीं बाहर नहीं ? वह पत्नी में, बच्चों में,मित्रों में,धन में,शराब में,जुएँ में,पद में, वैभव में,यश में और न जाने कहॉं-कहॉं, न जाने कितने जन्मों से इस आनन्द को खोज रहा है ।प्रभु कृपा से कभी कोई सज्जन पुरुष (सद्गुरू) मिल जाता है और वह इस सत्य का साक्षात्कार करा देता है कि आनन्द तो तेरे अन्दर है,अपनी अंहकार से तनी गरदन को ज़रा सा झुकाकर देख तो सही तुझे अपने स्वरूप का ज्ञान हो जायेगा,"दिल में छुपा के रक्खी थी तस्वीरें यार की, ज़रा सी गरदन झुकाई, देख ली"।यह गरदन झुकाना (आत्मावलोकन) करना यदि जीव को आ जाये तो बच्चा तो उसकी गोद में है ही ।

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