Monday 29 August 2011

खल परिहरिह स्वान की नाईं

                                             "खल परिहरिह स्वान की नाईं" "सठ सुधरहि सतसंगत पाई","मूरख हृदय न चेत,जो गुरु मिलहिं विरंच सम" यह तीनो पंक्तियाँ बाबा तुलसीदास द्वारा रचित हैं | तीनो के संदर्भ अलग-अलग हैं | हम सब के जीवन में भी यह तीनो प्रकार के व्यक्ति आते हैं | कभी शठ  से,कभी मूर्ख से और कभी खलों से भी जीवन में भेट हो ही जाती है और हम यह जान भी जाते हैं  कि यह किस श्रेणी के व्यक्ति हैं ? जान जाने के बाद भी मोह के कारन हम उन्हें श्वान  की तरह त्याग नहीं  पाते और वे हमारी इस कमजोरी को जानकर, जीवन भर हमें  कष्ट पहुंचाते  रहते है | भाई गोविन्द मिश्र ने मेरे एक मित्र से कहा था कि जिन्दगी इतनी बड़ी नहीं है कि बार-बार एक ही व्यक्ति को आजमाते रहो | उनकी यह बात बहुत अच्छी लगी थी | पर न उनकी बात को और न बाबा तुलसीदास की बात को ही जीवन में उतार सका और कष्ट पाता रहा | अब जीवन के उतरार्ध में, प्रभु से यही करबद्ध प्रार्थना है कि अब तो मोह से मुक्त कर दो, जिससे शेष जीवन आनंद से बीत सके |
शेष प्रभु कृपा |

काजर की कोठरी में

       " काजर की कोठरी में, कैसेहूँ सयानो जाय, काजर को दाग वाको लागिए ही लागिए" | अन्ना जैसे स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति के लिए पहिले यह कहा गया कि वह भ्रष्टाचार में  आकंठ डूबे हुए हैं | जब इस देश की जनता ने इस आरोप पर जबरजस्त नाराजगी व्यक्त की तो अब यह कहा जा रहा है कि इस आन्दोलन के लिए धन कहाँ से आ रहा है ? इसी तरह का आरोप जयप्रकाश जी के आन्दोलन के लिए भी लगाया गया था |                                                       जब भी इस धरती पर किसी महान आत्मा ने जन्म लिया है उसे इस तरह के आरोपो का सामना करना पड़ा है | भगवान राम को 14 वर्षों का बनवास भुगतना पड़ा,माँ सीता को अग्निपरीछा से   निकलना पड़ा | सुकरात को जहर पिलाया गया | ईशा को सूली में चडाया गया | गाँधी को गोली मारी गयी | जिसने भी समाज को बुराइयों से मुक्त करना चाहा,उस समय के बुराइयों में डूबे हुए व्यक्तियों ने,यथास्थित के  पक्छधारक लोगों ने, उन महान व्यक्तियों को कलंकित करने का ऐसा ही घ्रणित प्रयास किया है |  मित्र की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं,"रगों में दौड़ने के हम नहीं कायल, जो आखों से न टपके, वह लहू क्या है|" " एक बूढ़ा आदमी है या यह कहूँ, एक रोशनदान है|" अन्ना हजारे एक रोशनदान की तरह, हमारे अँधेरे मन में, एक ऐसे प्रकाश के संवाहक बन गए है जो हमें भर गया है,आशाओं से, आनंद से, उत्साह  से,इक ऐसी उर्जा से, जो हमें दे गया है, अपने अधिकारों के लिए, एक लम्बी लड़ाई लड़ने का साहस |

चोर-चोर मौसेरे भाई

 "चोर-चोर मौसेरे भाई, आवा सब मिल बाँट के खाई ,
                                                       ऐसन  फरा लिलार कि जैसिन रानिऊ के घर मानिऊ आई " 

                                                                 आज दूरदर्शन में शरद यादव को बोलते देखकर अपने मित्र डॉ० अशोक त्रिपाठी की बहुत पहिले लिखी गयी कविता की उपरोक्त पंक्तियाँ याद आ गयीं  | हमारे माननीय सांसद विदूषक भी हो सकते हैं, यह आज शरद यादव को देखकर लगा | मुझे लगता था कि यह ज़मीन से जुड़ा हुआ नेता है, पर आज जिस तरह से वह चल रहे जन आन्दोलन को मुट्ठीभर  तमाशबीनों  का आन्दोलन तथा दूरदर्शन को नींद ख़राब करने वाला डिब्बा बताकर मजाक उड़ा रहे थे और हमारे अन्य माननीय सांसद जिस तरह पागल आदमियों की तरह अट्ठहास  कर रहे थे, उसे देखकर मन में इतनी तेज जुगुप्सा  उत्पन्न हुई कि टीवी बंद करके, अपने को हल्का करने के लिए ब्लॉग लिखने बैठ गया | जब बैठा तो उपरोक्त पंक्तियाँ  याद आयीं |इस देश को नेता और अधिकारी मिलकर किस तरह से लूट रहे है, यही इस कविता की विषय वस्तु है," चोर -चोर मौस्युर भाई | आवा सब मिल बाँट के खाई | ऐसिन फरा लिलार कि जैसे रान्दिउ के घर मानी आई |" नेता और अधिकारी दोनों का भाग्योदय इस प्रकार हुआ है जैसे किसी विधवा स्त्री को किसी विवाह आदि का निमंत्रण पाने पर होता है | शेष प्रभु कृपा |

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Saturday 20 August 2011

रक्त वर्षों से नसों में खौलता है, आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है

"रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
               आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है " ,

"यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ,
               मुझे मालूम है, पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा" ,

"इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो,
              जब तलक खिलते नहीं यह कोयले देंगे धुआं"

भाई दुष्यंत की आपातकाल में लिखी गयीं उपरोक्त पंक्तियाँ आज अन्ना हजारे जी के चल रहे आन्दोलन के संदर्भ में कितनी सटीक हैं | यह आन्दोलन सामान्य जनता  के मन में वर्षों से पल रहे गुस्से का  विस्फोट है | यह तो हमारा सौभाग्य है कि इसे अन्ना हजारे जैसे निस्पृह  कर्मयोगी का नेतृत्व मिला है जो निश्चित रूप से इस विस्फोटक ऊर्जा को चेतना का वह पुंज बना देंगे जिसे झुठलाना किसी भी संसद के लिए संभव नहीं हो सकेगा | काश कि यह कार्य हमारी माननीय संसद द्वारा वर्षों पहिले कर लिया गया होता तो आज हम विश्व के गिने चुने भ्रष्ट देशों में शामिल न होते | 

शेष प्रभु कृपा |

Friday 19 August 2011

पैर धंस गए हैं भुरभुरी बर्फ में

 
आज जिस तरह से अन्ना हजारे के अनशन के बारे में, सत्ता में बैठे मदांध शासकों द्वारा निर्णय लिया जा रहा है,वह आपातकाल की यादों को पुनर्जीवन दे रहा है | मुझे अच्छी तरह याद है, जिस दिन इस देश में आपातकाल थोपा गया था, उस दिन एक समाचारपत्र ने अपने सम्पादकीय कॉलम में, मुंह का चित्र बनाकर, उसके उपर क्रास का निशान बना दिया था, उसके नीचे लिखा था,"आपातकाल लागू" और पूरा सम्पादकीय कॉलम खाली छोड़ दिया था | उस पत्र का यह प्रतीकात्मक विरोध बहुत अच्छा लगा था | उस आपातकाल ने लिखने की, बोलने की आजादी छीन ली थी | यह आजादी छीन लेने का दंड सत्ता को भोगना पड़ा था |

                                           आज इतिहास अपने को दोहराने जा रहा है | आदमी की अभिव्यक्ति की आजादी पर जब -जब भी संकट आया है, तब-तब यह निरीह सा दिखने वाला आदमी, फौलाद की तरह, मजबूत हो गया है और सत्ता के चलाये घन  उसे तोड़ने में सफल नहीं हो पाए हैं | जब आपातकाल लगा था तब मैं सरकारी नौकरी में था | उस समय भाई दुष्यंत अपनी पूरी ओजस्विता के साथ हिंदी गजल को एक नया आयाम दे रहे थे और भाई कमलेश्वर पूरी सम्पादकीय निष्टा के साथ "सारिका" में उसे छाप भी रहे थे | हम नवयुवकों को दुष्यंत की गजलें प्रेरणा की वह अजस्र श्रोत  बन गयी थी जो आज फिर से हमें पुनर्जीवन  देने के लिए याद आने लगीं है | उनकी गजलों के कुछ शेर प्रस्तुत हैं

                 "मत कहो आकाश में कोहरा घना है,
                                                                   यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है |"

                        "कौन कहता है, आकाश में सूराख नहीं हो सकता,
                                                                        एक पत्थर तो तबियत से, उछालो यारो |",

                      "यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है,
                                                                       चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिये |"


उसी आपातकाल में लिखी गयी मुझे अपनी  एक कविता याद आ रही है:-

                          
        पैर धंस गए हैं भुरभुरी बर्फ में,
                      जो अब जमकर पत्थर हो गयी है घुटनों तक |
         हाथों में  धोखेबाज समय ने गाड़ दी है कीलें,
                       सूख गयीं है आँखों में  लहराते विश्वासों की झीलें |
          हरे भरे बाग़ को बेदर्दी से रौंद गया बेमौसमी पतझर,
                       जाने कितनी परिचित,अपरिचित शंकाओं से घिरा मन |
          पुतलियों में जम गया खूब घना कोहरा ,
                       शंखों की बेसुरी धुनों ने कर दिया बहरा |
          मेरे युग का देवता ,  कुत्तों को दाल गया बोटियाँ ,
                                                              मेरे मुंह में  ठूंस गया रोटियाँ |
          दूर कहीं , कोई जोर से चिल्ला रहा है ,
                       सूरज गर्भ में छटपटा रहा है | "

 शेष प्रभु कृपा |

Friday 12 August 2011

जाके प्रिय न राम वैदेही


"जाके प्रिय न राम वैदेही, तजिये ताहि कोटि बैरी सम, यद्यपि परम सनेही |" मीरा जी के पत्र के उत्तर में, तुलसीदास जी ने यह पद लिखकर मीरा जी को भेजा था | इस पद में तुलसीदास जी ने आगे उदाहरण देते हुए कहा है कि जैसे प्रह्लाद ने अपने पिता को, विभीषण ने अपने भाई को और भरत ने अपनी माँ को केवल इसलिए छोड़ दिया कि यह भक्ति मार्ग के बाधक थे |
             
                 संसार के सारे रिश्ते स्वार्थ के हैं, " स्वारथ लागि करहि सब प्रीती, सुर,नर,मुनि सब कै यह रीती |" आदमी मोह के कारण रिश्तों में बंधा रहता है, चाहकर भी इनसे मुक्त नहीं हो पाता | केवल प्रभु ही एक ऐसे हैं जो आपसे अहैतुकी ,निष्केवल और स्वार्थरहित प्रेम करते हैं | पर आप भगवान से भी, अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए ही प्रेम करते है । जैसे ही आपका स्वार्थ पूरा हो जाता है,आप उसे धन्यवाद देना भी भूल जाते हो |

                     आप पूजा में बैठे हो, तभी कोई ऐसा व्यक्ति आ जाता है जिससे आपका कोई स्वार्थ हो, आप तुरंत पूजा छोड़ कर उठ जाते हो, भगवान से क्षमा भी नहीं मांगते, क्योंकि आपको लगता ही नहीं है कि आपसे कोई अपराध हुआ है | संसार में कोई भी आपका जरा सा भी उपकार कर देता है तो आप उसके समक्ष बिछ जाते हो | जिस प्रभु के उपकारों से आप कभी उऋण नहीं हो सकते, उसके लिए आपके पास ५ मिनट का भी समय नहीं है ,फिर भी वह अकारण करुणा वरुणालय, अपनी कृपा की वर्षा से आपको हर समय सिंचित करता रहता है |

                   वह जानता है कि आप मोह और ममता से ऊपर नहीं उठ सकते । वह आपसे केवल इतना चाहता है , " सबकी ममता तागि बटोरी,  मम पद मनहि बांधी वरि डोरी |" आप यह भी नहीं कर पाते | मेरे गुरु जी भी यही कहा करते थे कि मोह, मद ,मत्सर आदि विकारों से मुक्त हो पाना बड़ा मुश्किल है पर इन विकारों को यदि भगवान के साथ जोड़ दिया जाये तो यही विकार, वरदान बन सकते है | जैसे तुम्हे पुत्र से मोह है, तुम भगवान को अपना पुत्र बना लो और उससे मोह करो | तुम्हारा कल्याण हो जायेगा |

                 गीता में प्रभु ने स्पष्ट कहा है, " ये यथा माम प्रपद्यन्ते, तान सः तथैव भजाम्यहम् " जो जिस भाव से मुझे भजते हैं, मैं भी उन्हें उसी भाव से भजता हूँ  | आप एक कदम उसकी ओर चलकर देखो तो, वह दौड़कर तुम्हे अपनी गोद में उठा लेगा |
शेष प्रभु कृपा |




दर्द जब अंगडाइयाँ लेता हृदय में

"दर्द जब अंगडाइयाँ लेता हृदय में और दहकता अंगार कोई शीतल छार होता है, भावना जब वज्र का मुख चूमती है तब जाकर कहीं इक गीत का अवतार होता है |" दर्द जब हद से गुजर जाता है तब दर्द ही दवा बन जाता है |

             अपने शायर दोस्त की एक लाइन याद आ रही है , "शीशे में दिल का खून उतारा है फिर कहा " । जब पीड़ा घनीभूत हो जाती है तब वह बादल बनकर बरस  जाती है |

                  प्रसादजी की यह पंक्तियाँ " वियोगी होगा पहला कवि , आह से उपजा होगा गान,निकल कर नयनों से चुपचाप , बही होगी कविता अनजान |"

                  जिन्दगी में दर्द, पीड़ा, दुःख ,संत्रास, कष्ट, परेशानियाँ न हो तो आदमी अहंकार के कारण मदांध हो जाये | दुःख आने पर ही प्रभु की याद आती है | सुख में तो वह भूला रहता है,उसे लगता है कि सुख तो उसने अपने पुरुषार्थ से अर्जित किया है इसका कर्ता वह अपने को मानता है,पर जब दुःख आता है तो वह भगवान को दोष देता है, जब कि सुख-दुःख दोनों ही व्यक्ति के अपने कर्मों का ही परिणाम है| मानस में लखनलाल निषादराज से यही कहते हैं " काहू न कोऊ सुख-दुःख का दाता, निज कृत कर्म भोग सब भ्राता |" सब भगवान से सुख की ही कामना करते है, दुःख कोई नहीं चाहता |

                   किन्तु हमारे ही देश में, माँ कुंती भी हुई हैं, जिन्होंने भगवान से विपत्तियाँ ही मांगी हैं और यह कहा है कि प्रभु मेरी हर विपत्ति में तुम सहायता के लिए भागकर आये हो,इसलिए मेरे जीवन में विपत्तियाँ ही आती रहे जिससे प्रभु आपके  दर्शन और आपकी कृपा दोनों ही प्राप्त होती रहें ।
शेष प्रभु कृपा |