Friday 12 August 2011

दर्द जब अंगडाइयाँ लेता हृदय में

"दर्द जब अंगडाइयाँ लेता हृदय में और दहकता अंगार कोई शीतल छार होता है, भावना जब वज्र का मुख चूमती है तब जाकर कहीं इक गीत का अवतार होता है |" दर्द जब हद से गुजर जाता है तब दर्द ही दवा बन जाता है |

             अपने शायर दोस्त की एक लाइन याद आ रही है , "शीशे में दिल का खून उतारा है फिर कहा " । जब पीड़ा घनीभूत हो जाती है तब वह बादल बनकर बरस  जाती है |

                  प्रसादजी की यह पंक्तियाँ " वियोगी होगा पहला कवि , आह से उपजा होगा गान,निकल कर नयनों से चुपचाप , बही होगी कविता अनजान |"

                  जिन्दगी में दर्द, पीड़ा, दुःख ,संत्रास, कष्ट, परेशानियाँ न हो तो आदमी अहंकार के कारण मदांध हो जाये | दुःख आने पर ही प्रभु की याद आती है | सुख में तो वह भूला रहता है,उसे लगता है कि सुख तो उसने अपने पुरुषार्थ से अर्जित किया है इसका कर्ता वह अपने को मानता है,पर जब दुःख आता है तो वह भगवान को दोष देता है, जब कि सुख-दुःख दोनों ही व्यक्ति के अपने कर्मों का ही परिणाम है| मानस में लखनलाल निषादराज से यही कहते हैं " काहू न कोऊ सुख-दुःख का दाता, निज कृत कर्म भोग सब भ्राता |" सब भगवान से सुख की ही कामना करते है, दुःख कोई नहीं चाहता |

                   किन्तु हमारे ही देश में, माँ कुंती भी हुई हैं, जिन्होंने भगवान से विपत्तियाँ ही मांगी हैं और यह कहा है कि प्रभु मेरी हर विपत्ति में तुम सहायता के लिए भागकर आये हो,इसलिए मेरे जीवन में विपत्तियाँ ही आती रहे जिससे प्रभु आपके  दर्शन और आपकी कृपा दोनों ही प्राप्त होती रहें ।
शेष प्रभु कृपा |

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