Friday 3 March 2017

तुम्हारे प्रश्नों का जवाब तो जिन्दगी दे देगी पर जब जिन्दगी तुमसे पूंछेगी कि मैं तो खुदा की इनायत बनकर तेरे पास आई थी कि तू खुदा की इस इनायत का लाभ उठाकर,अपने को इतना ऊपर उठा ले कि खुदा को खुद तेरी मर्जी पूंछनी पड़े ।
"खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर के पहले खुदा बंदे से खुद पूँछे बता तेरी रजा क्या है ?"
पर तूने क्या किया खुदगर्ज ? अपनी अतृप्त वासनाओं को पूरी करने के लिए खुदा की इस बेहतरीन इनायत को खामख़ा जायज कर दिया । जिन्दगी के इस सवाल का है कोई जवाब तेरे पास ?

Thursday 2 March 2017

निःसंदेह मन को पहचानना बहुत बड़ी बात है और यह भी सही है कि हर का मन अलग ढंग से चलता है ।
कुछ इसी तरह की बात अर्जुन ने कृष्ण से कही थी और कृष्ण ने जो समाधान दिया था वह इस प्रकार है ।
अर्जुन,"चंचलम् हि मनः कृष्णः प्रमाथि बलवत् दृढ़म् । तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव स दुष्करम्"
अर्थात् हे कृष्ण मन बहुत ही बलवान,दृढ़,संशययुक्त और चंचल है । इस मन पर नियंत्रण करना उसी प्रकार कठिन है जिस प्रकार चल रही वायु में नौका पर नियंत्रण करना ।
कृष्ण,"असंसयम् महाबाहो मनो दुर्निगहम् चलम् । अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च ग्रह्यते ।"
अर्थात् हे अर्जुन निश्चित रूप से  मन बहुत ही बलवान एवं दृढ़ है तथा चंचल है पर इसे अभ्यास और वैराग्य के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है ।
अब अभ्यास और वैराग्य क्या है ? यह विषय विस्तार का है । अतः इस पर फिर कभी । इस समय केवल इतना ही कि वैराग्य का अर्थ संन्यास नहीं है अपितु संसार में कमलवत् जीवन जीने से है ।