Thursday 2 March 2017

निःसंदेह मन को पहचानना बहुत बड़ी बात है और यह भी सही है कि हर का मन अलग ढंग से चलता है ।
कुछ इसी तरह की बात अर्जुन ने कृष्ण से कही थी और कृष्ण ने जो समाधान दिया था वह इस प्रकार है ।
अर्जुन,"चंचलम् हि मनः कृष्णः प्रमाथि बलवत् दृढ़म् । तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव स दुष्करम्"
अर्थात् हे कृष्ण मन बहुत ही बलवान,दृढ़,संशययुक्त और चंचल है । इस मन पर नियंत्रण करना उसी प्रकार कठिन है जिस प्रकार चल रही वायु में नौका पर नियंत्रण करना ।
कृष्ण,"असंसयम् महाबाहो मनो दुर्निगहम् चलम् । अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च ग्रह्यते ।"
अर्थात् हे अर्जुन निश्चित रूप से  मन बहुत ही बलवान एवं दृढ़ है तथा चंचल है पर इसे अभ्यास और वैराग्य के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है ।
अब अभ्यास और वैराग्य क्या है ? यह विषय विस्तार का है । अतः इस पर फिर कभी । इस समय केवल इतना ही कि वैराग्य का अर्थ संन्यास नहीं है अपितु संसार में कमलवत् जीवन जीने से है ।

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