Thursday 17 September 2015

"जो सुमिरत सिधि होइ गननायक करिबर बदन, करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन"

"जो सुमिरत सिधि होइ गननायक करिबर बदन,करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन"
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(जिन्हें स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं,जो गणों के स्वामी और सुन्दर हाथी के मुख वाले हैं,वे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों के धाम (श्री गणेशजी) मुझ पर कृपा करें)

आज इन्हीं बुद्धि राशि गणेश जी के जन्म दिन पर,आप सब को ढेर सारी शुभकामनाएँ ।

मूषक वाहक गणेश जी हम सबको एक संदेश देते हैं, जिसे यदि हम ग्रहण कर सकें तो जीवन आनन्दानुभूति से हमेशा आप्लावित रहे ।

बाह्य दृष्टि से देखने में यह बड़ा विचित्र सा लगता है कि विशालकाय गणेश का वाहन,छोटा सा मूसक (चूहा) है । इसका प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि मूसक, मन का प्रतीक है । मन हर समय संकल्प-विकल्प करता रहता है,यानि कि बहुत चंचल होता है ।"चंचलम् हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवदृणम्,तस्याहम् निग्रहम् मन्ये वायोरिव स दुस्करम्"--गीता । इसी मन की भाँति चूहा भी बहुत चंचल होता है । वह हर समय कुछ न कुछ कुतरता ही रहता है । उसके दाँत इतने तेज़ी से बढ़ते हैं कि यदि वह हर समय कुछ न कुछ कुतरना छोड़ दे तो उसके दाँत,उसके जबड़ों को तोड़कर बाहर आ जाएँ ।

यही स्थिति हमारे मन की भी हैं । यदि इस मन रूपी चूहे पर बुद्धि रूपी गणेश का नियंत्रण न हो तो मन हमारा सर्वनाश कर दे ।
आज उनके जन्मदिन पर यदि हम यह संकल्प लें कि हमारे मन पर हमारी बुद्धि का नियँत्रण,हम हमेशा बनाए रक्खेगें तो हमारा जन्मदिन मनाना सार्थक होगा अन्यथा नहीं ।

Monday 14 September 2015

हिन्दी दिवस पर

हिन्दी दिवस पर
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आज हिन्दी दिवस है । बहुत सारे नाटक होंगे । जो हिन्दी की रोटी खाते हैं,वे सब बड़ी-बड़ी बातें करेंगे । पर जब इनके बारे में जानेगेँ तो आश्चर्य में पड़ जायेगें । इन सब के घरों में ज़्यादातर अंग्रेज़ी का वर्चस्व होगा । इनके बच्चे आंग्ल भाषा के माध्यम वाले विद्यालयों के छात्र होगें । रहन-सहन भी पाश्चात्य अभिजात्य के अनुसार होगा ।

कितनी बड़ी विडम्बना है कि हिन्दी फ़िल्मों के नायक और नायिका,या अन्य विभागों से जुड़े हुए लोग,जो हिन्दी फ़िल्मों की वजह से करोड़पति,अरबपति और खरबपति हैं, वे साक्षात्कार के समय,ज़्यादातर आंग्ल भाषा का ही प्रयोग करेगें । इतना ही नहीं हिन्दी फ़िल्मों के एवार्ड फ़ंक्शन का संचालन ज़्यादातर आंग्ल भाषा में ही किया जायेगा ।

मुझे आज से ३५-४० वर्ष पूर्व "कादम्बनी" पत्रिका में छपा श्री सुनील शास्त्री ( आदरणीय लालबहादुर शास्त्री के पुत्र ) का एक संस्मरण याद आ रहा है, जिसमें उन्होंने लिखा था कि विदेश यात्रा (सम्भवत: रूस) के समय, उन्हें एक पते के विषय में जानकारी करनी थी । वह जिस भी व्यक्ति से अंग्रेज़ी में पता पूंछते वह व्यक्ति बिना इनकी ओर ध्यान दिए (बग़ैर रुके) आगे बड़ जाता था ।इन्हें लगा कि यह कैसा असभ्य देश है ? जब वह काफ़ी परेशान हो गए तो अचानक मन में एक विचार आया कि क्यों न हिन्दी में पूंछकर देखा जाये ? उन्होंने जैसे ही यह प्रयोग किया, वैसे ही व्यक्ति रुका और उसने इनको अपने साथ चलने का इशारा किया । वह इनको ऐसे व्यक्ति के पास ले गया जो हिन्दी जानता था । उनकी समस्या का समाधान हो गया । सुनील जी ने उस हिन्दी जानने वाले से जब यह पूंछा कि जब तक वह अंग्रेज़ी में पूछते रहे,तब तक कोई भी व्यक्ति उनकी तरफ़ मुख़ातिब क्यों नहीं हुआ ?तो उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि चूँकि आप हिन्दुस्तानी होते हुए भी विदेशी भाषा का प्रयोग कर रहे थे इसलिए कोई नहीं रुक रहा था । जैसे ही आपने अपनी मातृ भाषा का प्रयोग किया तो तुरन्त आपकी सहायता की गयी क्योंकि हम भी अपनी मातृ भाषा का बहुत सम्मान करते हैं ।म
 

Friday 4 September 2015

शिक्षक दिवस पर

शिक्षक दिवस पर
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शास्त्रों  ने मानव जीवन का उद्देश्य निम्न मंत्र में स्पष्ट किया है 
"असतो मा सद् गमय
 तमसो मा ज्योत्रिगमय 
 मृत्योर मा अमृतंगमय"
असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरत्व की ओर की यात्रा ही मानव जीवन का लक्ष्य है । 
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये, हमारे जीवन में जो भी हमारे सहायक हुये हैं,वे सब हमारे गुरु हैं । वैसे गुरु का शाब्दिक अर्थ भी यही है कि जो 'गु' माने अन्धकार से 'रु' माने प्रकाश की ओर ले जाये, उसे गुरु कहते हैं ।

महर्षि दत्तात्रेय जी ने अपने जीवन में २४ गुरु बनाये है, जिसमें एक गुरु के रुप में उन्होंने कन्या को माना है । कन्या को गुरु के रूप में उन्होंने इसलिए स्वीकार किया कि एक बार,घर में अतिथि (अतिथि उसे कहते हैं जिसके आने की पूर्व सूचना न हो ) आ जाने पर 
पिता ने बाहर से पुत्री को आवाज़ दी कि वह अतिथि के लिए भोजन तैयार करे । उस समय संयोगवश घर में कोई भोजन की सामग्री नहीं थी । कुछ धान घर में पड़ा हुआ था । कन्या ने जल्दी से हाथों में एक चूड़ी छोड़ कर शेष चूड़ियाँ उतार कर, धान कूट कर भोजन तैयार कर दिया । कन्या ने एक चूड़ी छोड़कर बाकी चूड़ियाँ इस लिए उतार दी थी कि चूड़ियों के शोर से अतिथि को पता लग जाता कि घर में कुछ नहीं है । दत्तात्रेय जी ने इस घटना से "अद्वैत" की शिक्षा ली कि जहाँ एक से ज़्यादा हैं वहीं द्वैत है और जहाँ द्वैत है वहीं द्वन्द्व है, वहीं शोर है ।

आज शिक्षक दिवस पर मैं अपने जीवन में आए उन सभी महानुभावों को साष्टांग प्रणाम करता हूँ जिनसे मैनें जीवन के सही अर्थ सीखे हैं ।