Monday 14 September 2015

हिन्दी दिवस पर

हिन्दी दिवस पर
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आज हिन्दी दिवस है । बहुत सारे नाटक होंगे । जो हिन्दी की रोटी खाते हैं,वे सब बड़ी-बड़ी बातें करेंगे । पर जब इनके बारे में जानेगेँ तो आश्चर्य में पड़ जायेगें । इन सब के घरों में ज़्यादातर अंग्रेज़ी का वर्चस्व होगा । इनके बच्चे आंग्ल भाषा के माध्यम वाले विद्यालयों के छात्र होगें । रहन-सहन भी पाश्चात्य अभिजात्य के अनुसार होगा ।

कितनी बड़ी विडम्बना है कि हिन्दी फ़िल्मों के नायक और नायिका,या अन्य विभागों से जुड़े हुए लोग,जो हिन्दी फ़िल्मों की वजह से करोड़पति,अरबपति और खरबपति हैं, वे साक्षात्कार के समय,ज़्यादातर आंग्ल भाषा का ही प्रयोग करेगें । इतना ही नहीं हिन्दी फ़िल्मों के एवार्ड फ़ंक्शन का संचालन ज़्यादातर आंग्ल भाषा में ही किया जायेगा ।

मुझे आज से ३५-४० वर्ष पूर्व "कादम्बनी" पत्रिका में छपा श्री सुनील शास्त्री ( आदरणीय लालबहादुर शास्त्री के पुत्र ) का एक संस्मरण याद आ रहा है, जिसमें उन्होंने लिखा था कि विदेश यात्रा (सम्भवत: रूस) के समय, उन्हें एक पते के विषय में जानकारी करनी थी । वह जिस भी व्यक्ति से अंग्रेज़ी में पता पूंछते वह व्यक्ति बिना इनकी ओर ध्यान दिए (बग़ैर रुके) आगे बड़ जाता था ।इन्हें लगा कि यह कैसा असभ्य देश है ? जब वह काफ़ी परेशान हो गए तो अचानक मन में एक विचार आया कि क्यों न हिन्दी में पूंछकर देखा जाये ? उन्होंने जैसे ही यह प्रयोग किया, वैसे ही व्यक्ति रुका और उसने इनको अपने साथ चलने का इशारा किया । वह इनको ऐसे व्यक्ति के पास ले गया जो हिन्दी जानता था । उनकी समस्या का समाधान हो गया । सुनील जी ने उस हिन्दी जानने वाले से जब यह पूंछा कि जब तक वह अंग्रेज़ी में पूछते रहे,तब तक कोई भी व्यक्ति उनकी तरफ़ मुख़ातिब क्यों नहीं हुआ ?तो उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि चूँकि आप हिन्दुस्तानी होते हुए भी विदेशी भाषा का प्रयोग कर रहे थे इसलिए कोई नहीं रुक रहा था । जैसे ही आपने अपनी मातृ भाषा का प्रयोग किया तो तुरन्त आपकी सहायता की गयी क्योंकि हम भी अपनी मातृ भाषा का बहुत सम्मान करते हैं ।म
 

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