Wednesday 12 September 2012

कात्यायनी (ख़ुशी) के तृतीय जन्मदिन पर

आज
तुम्हारा जन्म दिन है
मेरी लाडली
और
मुझे
याद आ रहा है
वह घटनाक्रम
जो आज भी
स्मृतियों में
इस तरह जीवंत है
जैसे कल ही घटा हो
यह सब कुछ
आश्रम में
बैठे थे
हम
कि तभी तुम्हारे पापा का आया था
फ़ोन
उत्तेजना, निराशा और घबराहट
से परिपूर्ण स्वर में
तुम्हारे पापा ने बताया था
हमें
कि
कुछ दुश्वारियां आ जाने के कारण
तुम्हे गर्भ में ही ख़त्म करने की सलाह
दे रही है डॉक्टर
तुम्हारी दादी ने की थी
फ़ोन पर
डॉक्टर से बात
डॉक्टर ने
किया था निर्देशित
तुरंत निर्णय लेने के लिए
अनिर्णय की स्थिति   में
कुछ भी घटित होने की चेतावनी देते हुए
यह भी कहा था
कि यदि आप लोग गर्भ रोकने का निर्णय लेते हैं
तो बच्चे के विकलांग पैदा होने की पूरी सम्भावना है
घबड़ा गए थे हम पूरी तरह से
स्वामी जी को जैसे ही पूरी बात बतायी
मुझे आज भी याद है
स्वामी जी का वह तमतमाया  हुआ चेहरा
वह थरथराती हुई आवाज
"तुम और तुम्हारी डॉक्टर भगवान बन गए हो
तुम लोग निर्णय लोगे
कि
किस जीव को धरती पर आना है किसे नहीं ?"
हमने डरते हुए बताया
कि पैदा होने कि स्थिति में
बच्चे के विकलांग होने की पूरी सम्भावना है
वह पूरे विश्वास के साथ बोले
कि मैं गारंटी लेता हूँ
बच्चे को कुछ नही होगा
वह पूरी तरह स्वस्थ और मेधावी होगा
इतना कहकर
वह उठे थे तेजी से
आश्रम के बाहर
धार्मिक पुस्तकों की दूकान से
लेकर लौटे थे वे
"संतान गोपाल स्त्रोत"
इस पुस्तक के दसवें श्लोक पर
अपने हाथ से लगाकर निशान
पुस्तक
मुझे देते हुए
बोले
कि तुम्हे नित्य पाठ करना है
इसका
और दसवें श्लोक की माला
कम से कम एक बार अवश्य जपनी है
और ख़ाली समय में मौन होकर निरंतर जप करना है
श्लोक को जाग्रत करने की प्रक्रिया बताते हुए
उन्होंने आश्वस्त किया कि प्रभु कृपा करेंगे
और सब कुछ शुभ होगा
और इस तरह  तुम माँ के गर्भ में ही
काल को पराजित करके
धरा पर अवतरित हुई थी
मेरी माँ, मेरी दुर्गा, मेरी कात्यायनी

मुझे
यह भी  याद है कि जब हमने
स्वामी जी को तुम्हारे जन्म का समाचार दिया था
तो वह खुश  होकर बोले थे
कि यह तुम सब के जीवन में खुशियाँ लेकर आई है
अत: इसका नाम ख़ुशी होगा
आज के दिन
मेरे गुरु, मेरे पिता मेरे भगवान
विष्णु लोक से यही आशीर्वाद दे रहे हैं
कि तुम अपने पवित्र आचरण से
अपने संपर्क में आने वाले हर प्राणी के जीवन को
खुशियों से भर देना
मेरी बच्ची
महर्षि कत्य के तप से प्रसन्न होकर
माँ ने महर्षि को
मनचाहा वरदान देते हुए कहा था
मैं आपकी इच्छा अनुसार
आपकी पुत्री के रूप में ही दुष्टों का संहार  करने के लिए
धरा पर अवतरित होउंगी
और मेरा नाम आपके नाम पर ही कात्यायनी    होगा
अपने नाम ख़ुशी और कात्यायनी  को सार्थक करना
मेरी लाडली
आज के दिन मेरा भी यही आशीर्वाद  है |