Monday 30 January 2017

वामदेव ऋषि की तपस्थली
तुलसी,पद्माकर,केदार,पुष्कल,पहाड़िया,की जन्मस्थली और कर्मस्थली वाला बांदा
केन की अनगढ़ कछारों वाला बांदा
बात ही बात में लाठी और गोली चलाने वाला बांदा
मूंछो की रेख आते ही
धरती पर न चलने वाला बांदा
आजादी की लड़ाई में
अपना सर्वस्य न्योछावर करने वाले
'बांदा के नवाब' वाला बांदा
हाँ हाँ वही बांदा
जहाँ पैदा होने का मुझ गर्व है
और जिसका ऋण मेरे ऊपर
अन्तिम सांस तक रहेगा 

Thursday 19 January 2017

"परिहित सरिस धर्म नहि भाई,परपीड़ा सम नहि अधमाई ।"---रामचरित मानस ।
तुलसी ने धर्म का सार एक ही पंक्ति में कह दिया है कि दूसरे का हित करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है और दूसरे को पीड़ा पहुँचाने से बड़ा कोई अधर्म नहीं है ।
बाल्मीकि रामायण में भरत जी माता कौशल्या से कहते हैं कि यदि राम के वनवास में उनकी कोई भूमिका हो तो उन्हें भी  वह भयंकर पाप लगे जो किसी श्रमिक को उसके श्रम के एवज में यथोचित मजदूरी न देने में लगता है ।

Saturday 7 January 2017

सामाजिक विकास को कौन नकार सकता है । सामाजिक भौतिक विकास के साथ सामाजिक भौतिक मूल्यों में भी परिवर्तन होता है यह भी सही है किन्तु शाश्वत मूल्यों में परिवर्तन सम्भव नहीं है जैसे मानवीय  सभ्यता के जन्म के समय से ही प्रेम और घृणा मानव में थे । प्रेम तब भी आनन्द का कारक था और आज भी है । पानी के तत्वों की जानकारी के पहले भी उसका निर्माण  H2O के रूप में ही होता था । भौतिक विकास के फलस्वरूप इसके निर्माण का तरीका नहीं बदल सकता ।
सामाजिक भौतिक मूल्यों के निर्माण में भौगोलिक स्थितियां  (जिसमें पर्यावरण मुख्य है) मुख्य भूमिका निभाते हैं । आप पूरे संसार में एक से सामाजिक भौतिक मूल्यों की कल्पना  नहीं कर सकते पर हाँ शाश्वत मूल्य एक ही रहेगें । प्रेम की अभिव्यक्ति चाहे किसी भी भाषा में या बगैर भाषा के की जा जाए । चाहे कलम-दावत से की जाए,चाहे फेस बुक पर की जाए,प्रेम-प्रेम ही रहेगा । मांस खाने वाले को मांस खाने की जितनी स्वतंत्रता है और अपने विचारों के अभिव्यक्ति की जितनी स्वतंत्रता है,उतनी स्वतंत्रता तो आप शाकाहारी  को भी देना चाहेंगे ।
माँ जब तक गर्भ धारण करेगी,उसका बच्चे के प्रति वात्सल्य समाप्त नहीं होगा हाँ समय-काल-देश और पर्यावरण के अनुसार भाषा और तरीका अलग-अलग हो सकता है पर भाव में पृथकता मेरी समझ में सम्भव नहीं है,ऐसा मेरा विवेक कहता है । आप अपने विवेक के हिसाब से निर्णय लेने में स्वतंत्र है ।
"यत् जीवेत् सुखम् जीवेत्,ऋणम् कृत्वा घृतम् पीवेत् । भस्मीभूतस्य देह: पुर्नजन्म: कुत: ।"----चार्वाक ।
अर्थात् जब तक जिओ सुख से जिओ । यह देह तो चिताम में भस्म हो जायेगी । पुर्नजन्म किसने देखा है?
                    यह एक भौतिकवादी दर्शन है जो पाश्चात्य दर्शन से मेल खाता है जो खाओ-पिओ और मौज करो पर विश्वास करता है । भारतीय मनीषा इसके विपरीत है । इसको निम्न पंक्तियों से समझा जा सकता है ।
"एहि तन कर फल विषय न भाई,स्वर्गहु स्वल्प अन्त दुखदाई ।
नर तन पाइ विषय मन देहीं,पलट सुधा ते विष लेहीं ।
ताहि कबहुं भल कहहि न कोई,गुंजा ग्रहइ परस मनि खोई ।"----मानस
अर्थात् इस मनुष्य शरीर का फल यह नहीं है कि उसे विषयों के भोग में लगाया जाए । स्वर्ग के सुख भी अल्प होते हैं और उनका अन्त दुखदाई होता है । नर तन पाकर उसे विषयों में लगाना इसी तरह है कि अमृत को छोड़ कर विष ग्रहण करना या पारस मणि को त्याग कर गुंजा (घुघुंची) को ग्रहण करना ।
अब यह तुम्हारे विवेक पर निर्भर करता है कि तुम्हें कौन सा मार्ग ग्रहण करना है ?
यह एक भौतिकवादी दर्शन है जो पाश्चात्य दर्शन से मेल खाता है जो खाओ-पिओ और मौज करो पर विश्वास करता है । भारतीय मनीषा इसके विपरीत है । इसको निम्न पंक्तियों से समझा जा सकता है ।
"एहि तन कर फल विषय न भाई,स्वर्गहु स्वल्प अन्त दुखदाई ।
नर तन पाइ विषय मन देहीं,पलट सुधा ते विष लेहीं ।
ताहि कबहुं भल कहहि न कोई,गुंजा ग्रहइ परस मनि खोई ।"----मानस
अर्थात् इस मनुष्य शरीर का फल यह नहीं है कि उसे विषयों के भोग में लगाया जाए । स्वर्ग के सुख भी अल्प होते हैं और उनका अन्त दुखदाई होता है । नर तन पाकर उसे विषयों में लगाना इसी तरह है कि अमृत को छोड़ कर विष ग्रहण करना या पारस मणि को त्याग कर गुंजा (घुघुंची) को ग्रहण करना ।
अब यह तुम्हारे विवेक पर निर्भर करता है कि तुम्हें कौन सा मार्ग ग्रहण करना है ?