"परिहित सरिस धर्म नहि भाई,परपीड़ा सम नहि अधमाई ।"---रामचरित मानस ।
तुलसी ने धर्म का सार एक ही पंक्ति में कह दिया है कि दूसरे का हित करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है और दूसरे को पीड़ा पहुँचाने से बड़ा कोई अधर्म नहीं है ।
बाल्मीकि रामायण में भरत जी माता कौशल्या से कहते हैं कि यदि राम के वनवास में उनकी कोई भूमिका हो तो उन्हें भी वह भयंकर पाप लगे जो किसी श्रमिक को उसके श्रम के एवज में यथोचित मजदूरी न देने में लगता है ।
तुलसी ने धर्म का सार एक ही पंक्ति में कह दिया है कि दूसरे का हित करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है और दूसरे को पीड़ा पहुँचाने से बड़ा कोई अधर्म नहीं है ।
बाल्मीकि रामायण में भरत जी माता कौशल्या से कहते हैं कि यदि राम के वनवास में उनकी कोई भूमिका हो तो उन्हें भी वह भयंकर पाप लगे जो किसी श्रमिक को उसके श्रम के एवज में यथोचित मजदूरी न देने में लगता है ।
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