Saturday 7 January 2017

सामाजिक विकास को कौन नकार सकता है । सामाजिक भौतिक विकास के साथ सामाजिक भौतिक मूल्यों में भी परिवर्तन होता है यह भी सही है किन्तु शाश्वत मूल्यों में परिवर्तन सम्भव नहीं है जैसे मानवीय  सभ्यता के जन्म के समय से ही प्रेम और घृणा मानव में थे । प्रेम तब भी आनन्द का कारक था और आज भी है । पानी के तत्वों की जानकारी के पहले भी उसका निर्माण  H2O के रूप में ही होता था । भौतिक विकास के फलस्वरूप इसके निर्माण का तरीका नहीं बदल सकता ।
सामाजिक भौतिक मूल्यों के निर्माण में भौगोलिक स्थितियां  (जिसमें पर्यावरण मुख्य है) मुख्य भूमिका निभाते हैं । आप पूरे संसार में एक से सामाजिक भौतिक मूल्यों की कल्पना  नहीं कर सकते पर हाँ शाश्वत मूल्य एक ही रहेगें । प्रेम की अभिव्यक्ति चाहे किसी भी भाषा में या बगैर भाषा के की जा जाए । चाहे कलम-दावत से की जाए,चाहे फेस बुक पर की जाए,प्रेम-प्रेम ही रहेगा । मांस खाने वाले को मांस खाने की जितनी स्वतंत्रता है और अपने विचारों के अभिव्यक्ति की जितनी स्वतंत्रता है,उतनी स्वतंत्रता तो आप शाकाहारी  को भी देना चाहेंगे ।
माँ जब तक गर्भ धारण करेगी,उसका बच्चे के प्रति वात्सल्य समाप्त नहीं होगा हाँ समय-काल-देश और पर्यावरण के अनुसार भाषा और तरीका अलग-अलग हो सकता है पर भाव में पृथकता मेरी समझ में सम्भव नहीं है,ऐसा मेरा विवेक कहता है । आप अपने विवेक के हिसाब से निर्णय लेने में स्वतंत्र है ।

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