Friday 4 September 2015

शिक्षक दिवस पर

शिक्षक दिवस पर
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शास्त्रों  ने मानव जीवन का उद्देश्य निम्न मंत्र में स्पष्ट किया है 
"असतो मा सद् गमय
 तमसो मा ज्योत्रिगमय 
 मृत्योर मा अमृतंगमय"
असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरत्व की ओर की यात्रा ही मानव जीवन का लक्ष्य है । 
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये, हमारे जीवन में जो भी हमारे सहायक हुये हैं,वे सब हमारे गुरु हैं । वैसे गुरु का शाब्दिक अर्थ भी यही है कि जो 'गु' माने अन्धकार से 'रु' माने प्रकाश की ओर ले जाये, उसे गुरु कहते हैं ।

महर्षि दत्तात्रेय जी ने अपने जीवन में २४ गुरु बनाये है, जिसमें एक गुरु के रुप में उन्होंने कन्या को माना है । कन्या को गुरु के रूप में उन्होंने इसलिए स्वीकार किया कि एक बार,घर में अतिथि (अतिथि उसे कहते हैं जिसके आने की पूर्व सूचना न हो ) आ जाने पर 
पिता ने बाहर से पुत्री को आवाज़ दी कि वह अतिथि के लिए भोजन तैयार करे । उस समय संयोगवश घर में कोई भोजन की सामग्री नहीं थी । कुछ धान घर में पड़ा हुआ था । कन्या ने जल्दी से हाथों में एक चूड़ी छोड़ कर शेष चूड़ियाँ उतार कर, धान कूट कर भोजन तैयार कर दिया । कन्या ने एक चूड़ी छोड़कर बाकी चूड़ियाँ इस लिए उतार दी थी कि चूड़ियों के शोर से अतिथि को पता लग जाता कि घर में कुछ नहीं है । दत्तात्रेय जी ने इस घटना से "अद्वैत" की शिक्षा ली कि जहाँ एक से ज़्यादा हैं वहीं द्वैत है और जहाँ द्वैत है वहीं द्वन्द्व है, वहीं शोर है ।

आज शिक्षक दिवस पर मैं अपने जीवन में आए उन सभी महानुभावों को साष्टांग प्रणाम करता हूँ जिनसे मैनें जीवन के सही अर्थ सीखे हैं ।

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