Saturday 6 August 2011

एक ही उल्लू काफी था..........

एक ही उल्लू  काफी था ,वीराने गुलिस्ताँ करने को, हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा? आज अपने समाज की यही स्थिति है  | समाज के हर क्षेत्र में, इन्हीं की भरमार है | ये खुद तो मनहूसियत फैलाने के अलावा कुछ करते नहीं है, दूसरे को भी निरुत्साहित करते है कि यहाँ कुछ नहीं हो सकता, बेकार परेशान न हो, यह संसार ऐसे ही चलता रहा है,ऐसे ही चलेगा | इन्हीं कि वजह से दुष्यंत को लिखना पड़ा

"कहाँ तो तय था चरागाँ हर एक घर के लिए,
 कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए
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हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे,
यह लोग कितने मुनासिब है इस सफ़र के लिए |"

 इन उल्लुओं से सावधान रहने की आवश्यकता है, यह कब आपके जीवन में प्रवेश कर जायेंगे, आपको पता ही नहीं चलेगा । एक बार यह आपके जीवन में प्रवेश कर पाए तो यह आपको भी अपनी जमात में शामिल कर लेंगे और आप भी इन्हीं की तरह मलूकदास का यह दोहा गुनगुनाने लग जायेंगे -

 "अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम |
 दास मलूका कह गए, सब के दाता राम |"

आपको तो बस दुष्यंत का यह शेर हर समय ध्यान में रहे , इसी का अहर्निश चिंतन चलता रहे -

 "कौन कहता है कि आकाश  में सुराख़ नहीं हो सकता,
 एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो |"

 या

"यहाँ तक आते आते सूख जाती है कई नदियाँ,
मुझे मालूम है, पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा |"


 शेष प्रभु कृपा |               

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