घरों में प्रायः पति-पत्नी के बीच इस तरह के संवाद सुनने को मिलते हैं । यदि बच्चा अच्छा काम करके आया तो पिता कहेगा "आख़िर बच्चा है किसका ?" वही बच्चा जब ग़लत काम करके आता है तो पिता कहेगा,"बच्चे में सारे संस्कार तुम्हारे ही पड़ गए है,यदि एक-आध मेरे भी पड़ जाते तो इसका कल्याण हो जाता ।" यह संवाद मॉं की तरफ़ से भी बोले जा सकते हैं ।
आपके दो बच्चे हैं । एक भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित हो गया और दूसरा आवारा निकल गया । आप समाज के बीच में बैठे हैं,किसी व्यक्ति ने आपके प्रशासनिक सेवा में चयनित होने वाले बच्चे के लिए आपको बधाई दी और आपको भाग्यशाली ठहराया तो आपकी प्रतिक्रियात्मक टिप्पणी कुछ इस प्रकार होगी,"अरे,भाई साहब ! आप क्या जाने कि इसको यहाँ तक पहुँचाने में मुझे कितना श्रम करना पड़ा है ? कहॉं-कहॉं से जुगाड़ लगाकर इसको अच्छी कोचिंग करा पाया हूँ ,तब जाकर कहीं इसको यह सफलता मिली है । वहीं बैठे किसी दूसरे व्यक्ति ने यदि दबे स्वर में आपके आवारा बच्चे का ज़िक्र कर दिया,तो आपकी टिप्पणी कुछ इस प्रकार होगी,"अरे भाई मैंने तो यही प्रयास किया था कि मेरे दोनों बच्चे अच्छे निकले पर भगवान को मंज़ूर नहीं था ।"
यानि जो अच्छा हुआ उसका कर्ता मैं और जो ग़लत हुआ उसका कर्ता भगवान ।वाह रे इन्सान ? और वाह रे तेरी फ़ितरत ?
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