Saturday 20 June 2015

योग दिवस की पूर्व संध्या पर

कल अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस है ।कयी दिनों से इन्टरनेट पर,मीडिया पर ऐसा प्रचार चल रहा है कि जैसे कल पूरा संसार योगमय हो जायेगा ? मैं प्रसन्न हूँ,मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए,अत्यधिक उपयोगी,भारत की इस प्राचीन पद्धति के विश्व व्यापी प्रसार पर । मैं और मेरी तरह के करोड़ों लोग,इस पद्धति का आश्रय लेकर,मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ जीवन जीने में सफल हुए हैं । अत: इस पद्धति के प्रति,सम्मान या आभार का भाव न रखना कृतघ्नता ही कही जायेगी ।

पर इस दिवस पर मैं अपने को यह कहने से रोक नहीं पा रहा कि वर्तमान में चल रहा इसका व्यवसायीकरण,इस महत्वपूर्ण पद्धति को,एक वर्ग विशेष तक ही सीमित कर देगा और इसका लाभ जन सामान्य तक नहीं पहुँच पायेगा । 

महर्षि पतंजलि  ने योग की परिभाषा या उसका उद्देश्य बताते हुए कहा है,'योग: चित्त-वृत्ति निरोध:' यानि चित्त- वृत्ति का निरोध ही योग है । इस स्थिति तक पहुँचने के लिए उन्होंने आठ सोपान बताए हैं,इसीलिए उसे 'अष्टांग योग'कहा गया ।इसके आठ अंग इस प्रकार हैं,१-यम(अंहिसा,सत्य,ब्रह्मचर्य,अस्तेय,अपरिग्रह ) २-नियम(शौच,सन्तोष,तप,स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान) ३-आसन ४-प्राणायाम ५-प्रत्याहार ६-धारणा ७-ध्यान ८-समाधि ।योग के व्यवसायीकरण ने किया यह है कि इन आठ सोपानों में केवल चौथे सोपान को लेकर सीधे सांतवे सोपान यानि ध्यान में पहुँचा दिया जाता है और उसका कारण यह बताया जाता है कि आज यह सब कुछ करा पाना सम्भव नहीं है और जब व्यक्ति ध्यान करने लगेगा तो बाक़ी चीज़ें स्वत: धीरे-धीरे,साधक में अवतरित होने लगेंगीं । उनका यह तर्क सतही तौर पर ठीक लगता है,पर जब आप गहराई में जाएँगे यानि गम्भीरता से विचार करेंगे तो आपको यह स्पष्ट हो जायेगा कि यह तर्क, अपने व्यवसाय को तेज़ी से विश्वव्यापी बनाने के उद्देश्य से गढ़े गए हैं । मुझे इनकी इस व्यवसायिकता पर भी आपत्ति नहीं है,क्योंकि उससे एक वर्ग विशेष को ही सही लाभ तो मिल रहा है । 

आज जितने भी योग के स्कूल चल रहे हैं,उनमें से ज़्यादातर स्कूलों के शुल्क इतने ज़्यादा है कि सामान्य व्यक्ति उसके बारे में सोंच ही नहीं सकता ।मुझे केवल यह निवेदन करना है कि भारतीय संविधान हर व्यक्ति को व्यवसाय करने की स्वतंत्रता देता है । आप इस स्वतंत्रता का पूर्ण उपभोग करने के लिए स्वतंत्र हैं पर कृपया इसे मानवता की सेवा का नाम मत दीजिए ।

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