टुकड़ों-टुकड़ों में मिलकर क्यों तुमने मेरी प्यास बढ़ा दी
बार-बार सपनों में आकर क्यों मिलने की आस जगा दी
मिलना जब प्रारब्ध नहीं था तो क्यों मिलने की आदत डाली
तुमसे मिलकर ऐसा लगता जैसे सारी खुशियॉं पा लीं
ऐसा भी क्या कर डाला मैनें जो तुमने मेरी याद भुला दी
टुकड़ों-टुकड़ों में मिलकर क्यों तुमने मेरी प्यास बढ़ा दी
पीछा नहीं छोड़ूँगा तेरा चाहे जितने जन्म लगें लग जायें
नित नूतन मैं आहुति दूँगा अग्नि न जिससे बुझने पाये
पहिले तो बॉंहें फैलायीं फिर बिरहा की अग्नि जला दी
टुकड़ों-टुकड़ों में मिलकर क्यों तुमने मेरी प्यास बढ़ा दी
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