Saturday 25 July 2015

जहँ-जहँ कबीर माठा का जॉंय,भैंस पड़ा दोनौ मरि जॉंय

"जहँ-जहँ कबीर माठा का जॉंय,भैंस पड़ा दोनौ मरि जॉंय"
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यह बुन्देलखण्ड की एक कहावत है ।

इसका शाब्दिक अर्थ है कि कबीर जहाँ-जहाँ मठ्ठा(छाछ) के लिए जाते हैं,वहॉं भैंस और पड़वा (भैंस का बच्चा) दोनों मर जाते हैं ।

इसका लाक्षणिक अर्थ यह है कि व्यक्ति का भाग्य,उसके आगे-आगे चलता है ।

इसका आध्यात्मिक अर्थ है कि कबीर जहाँ-जहाँ मठ्ठा यानि कि अपनी खोज में गए तो उन्होंने पाया कि भैंस यानि कि माया और पड़ा यानि कि अंहकार का विगलन स्वत: हो गया है ।

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