Tuesday 7 July 2015

"तिरिया चरित्रम्,पुरुषस्य भाग्यम्,दैवो न जानसि"

"तिरिया चरित्रम्,पुरुषस्य भाग्यम्,दैवो न जानसि"
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स्त्री के चरित्र और पुरुष के भाग्य के विषय में देवता भी नहीं जानते । इस सूक्त को पढ़ा तो था पर यह कितना सार्थक है,इसका अनुभव नहीं था । इसके पहिले भाग की यथार्थता का अनुभव जब जीवन में पहिली बार हुआ था तो कुछ देर के लिए स्तब्ध रह गया था । पूरा घटनाक्रम इस प्रकार है ।

दृश्य १- वर्ष १९६८ ।उ०प्र० का एक कस्बानुमा शहर ।जिसको शहर कहने से शहर भी लज्जा से ज़मीन में गड़ जाने का मन करता था । इसी क़स्बे के एक मात्र डिग्री कालेज की,मासिक फ़ीस जमा करने की एक मात्र खिड़की पर एक छात्र और एक छात्रा मौजूद है । मासिक फ़ीस जमा करने की अन्तिम तिथि निकल चुकी है । अब केवल विलम्ब शुल्क के साथ फ़ीस जमा हो रही है । छात्र नेता भी है, अत: वह अपना विलम्ब शुल्क,प्राचार्य से मिलकर माफ़ करवा ले आया है । वह फ़ीस जमाकर के पलटता है तो छात्रा उससे अनुरोध करती है कि वह उसका भी विलम्ब शुल्क माफ़ करा दे । छात्र, छात्रा से प्राचार्य के नाम विलम्ब माफ़ी का प्रार्थना पत्र लिखाकर, उसका भी विलम्ब शुल्क माफ़ करा देता है । इसके बाद दोनो में बातचीत शुरू होती है :-
छात्रा :- बहुत-बहुत धन्यवाद । आपकी वजह से कुछ बचत हो गयी । आप तो जानते है कि मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, इसलिए समय से फ़ीस नहीं जमा कर पायी थी ।
छात्र :- इसमें धन्यवाद की कोई आवश्यकता नहीं है । जाओ अपनी फ़ीस जमा कर दो ।
छात्रा :- वह तो मैं कर ही दूँगी । आप सुनाइए, आपकी पढ़ाई कैसी चल रही है ?
छात्र टालने के अन्दाज़ में :- पढ़ाई तो तब हो,जब नेतागिरी से फ़ुरसत मिले । तुम्हारी पढ़ाई तो ठीक चल रही है ?
छात्रा :- अरे कहॉं ? अकेले पढ़ने में मन ही नहीं लगता । दोपहर में घर में अकेले रहती हूँ, आप आ जाया करो तो दोनो लोग,साथ-साथ पढ़ा करेंगे ।छात्र बग़ैर कोई जवाब दिए, तेज़ी से आगे बढ़ जाता है । 

दृश्य २- इस घटना के क़रीब एक सप्ताह बाद, छात्र शाम क़रीब ७ बजे, अपने घर, पहुँचता है तो उसकी सबसे बड़ी भाभी (जिनका वह मॉं की तरह सम्मान करता था) दरवाज़े पर ही टकरा गयीं । वह देवी मन्दिर से वापिस आ रही थी । उसे भाभी रोज़ की करह प्रसन्न नहीं दिखीं ।
छात्र :- क्या बात है ?
भाभी :- अन्दर चलो तुम से कुछ बात करनी है ।
छात्र :- हॉं,अब बताओ क्या बात है ?
भाभी :- तुम्हारी,तुम्हारे भैया से शिकायत करनी है ।
छात्र एकदम से घबड़ा गया,क्योंकि वह जब ६ महीने का था,तभी उसके पिता की मृत्यु हो गयी थी और उसके सबसे बड़े भाई ने,कभी भी उसे पिता के अभाव का रंचमात्र भी आभास नहीं होने दिया था । वह अपने बड़े भाई का इतना सम्मान करता था कि बड़े भाई से शिकायत की बात सुनते ही,उसके भय के कारण,पसीने छूट गए ।
छात्र :- मैंने ऐसी क्या ग़ल्ती की है जो बात भइया तक पहुँचाने की नौबत आ गयी है ?
भाभी :- तेज़ी से मेरा हाथ अपने सिर पर रखकर बोलीं । तुम्हें हमारे सिर की क़सम है । जो हम पूंछने जा रहे है,उसका ठीक-ठीक उत्तर देना ।झूठ बोले तो हमारा मरा मुँह देखोगे ।
छात्र :- पूंछो ।
भाभी :- तुम सिगरेट पीते हो ?
छात्र :- हॉं ।
भाभी :- क्यों पीते हो ?
छात्र :- छोड़ दूँगा ।
भाभी :- तुम कालेज में गुन्डा- गर्दी करते हो ?
छात्र :- नहीं नेतागिरी करता हूँ ।
भाभी :- दोनो में कोई ज़्यादा फ़र्क़ नहीं है । ख़ैर यह छोड़ो ।यह बताओ कि लड़कियॉं छेड़ते हो ? सही बताना ।झूठ मत बोलना ।
छात्र :- भाभी ! आप इतनी बड़ी क़सम के बाद भी सोचती हो कि मैं झूठ बोलूँगा । मैंने आज तक किसी लड़की को नहीं छेड़ा ।
छात्र :- मैंने आपके सारे प्रश्नों के ठीक-ठीक जवाब दे दिए है । अब आपको मेरी क़सम है, सही बताइयेगा कि यह सब आपसे किसने कहा है ?
भाभी :- तुम्हारे साथ एक लड़की पढ़ती है, वह आज मन्दिर में मिली थी ।
छात्र :- बस भाभी,अब अागे बताने की ज़रूरत नहीं है । मैं समझ गया कि वह कौन है और यह शिकायत उसने क्यों की है ? अगर आप मेरी हमउम्र होती तो आपको भी मैं बता देता ।मैं आपको मॉं का सम्मान देता हूँ, इसलिए इस राज को राज ही रहने दो ।

और मित्रों,इस प्रकार मैं पहिली बार तिरिया चरित्र से रूबरू हुआ ।

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