Friday 8 May 2015

आनन्द सभा से जुड़ने के बाद ?

                                                   चार बरस पूर्व सेवानिवृत्त के समय बच्चों ने एक लैपटॉप दिया था, जिससे मेरा ख़ालीपन भरता रहे । बच्चे यह भी चाहते थे कि मैं,छात्र जीवन के बाद से छूट गये लेखन को फिर से प्रारम्भ करूँ । मैं उन्हे कैसे समझाता कि अडतीस वरसो के अन्तराल के बाद फिर से लेखन प्रारम्भ करना कितना दुष्कर होगा ? छात्र जीवन में ही छपने का एवं आकाशवाणी के युवामंच कार्यक्रम में काव्यपाठ का सुख मैं उठा चुका था, अत: अन्तस में उस सुख के पुन: भोगने के संस्कार, निश्चित रूप से रहे होगें, जिसे शायद बच्चों ने समझ लिया होगा ।इतने लम्बे अन्तराल का कारण मेरी यह सोच थी कि मैं जिन आदर्शों की बातें,अपने लेखन में करता हूँ, उसके अनुरूप जब मैं स्वयं अपना जीवन नहीं जी पा रहा हूं तो ऐसे लेखन का क्या अर्थ है ? और तब मैंने सायास लेखन छोड़ दिया था ।
                                                      जिस समय मैं सेवानिवृत्त हुआ था,उस समय मेरे इस जीवन के वह गुरू जी,जिन्होंने आठ वर्षों में मेरे अर्थहीन जीवन को एक अर्थ दे दिया था, गम्भीर रूप से अस्वस्थ चल रहे थे । मैं उनके विछोह की कल्पना मात्र से  अन्दर तक कॉंप जाता था । मैंने अपने मानसिक संतुलन को बनाये रखने के लिए,ब्लाग लेखन प्रारम्भ किया और इसके कारण ही मैं छह माह बाद हुये अपने गुरू के महाप्रयाण के बाद, अपने को संतुलित रखने में सफल हो सका । उनके महाप्रयाण के बाद मैं विक्षिप्त होने से तो बच गया, पर एक अजीब सी जड़ता जीवन में आ गयी । अब मेरे जीवन का कोई उद्देश्य ही नहीं रह गया था ।इस जीवन के सारे भौतिक,पैतृक,धार्मिक उत्तरदायित्वों से मेरे गुरु जी अपने जीवन काल में ही मुक्त कर गये थे ।
                                                       इस अयाचित जड़ता से बाहर निकलने के लिये मैं विगत सवा तीन वर्षों से,कहीं भी एक-डेढ़ महीने से ज़्यादा नहीं टिकता । ज़्यादातर समय पश्चिम भारत,दक्षिण भारत और उत्तर भारत में बीतता है । इतना करने के बाद भी, मैं, जड़ता से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पा रहा हूँ और उसका कारण मैं स्वयं हूँ ।जब बच्चों के पास रहता हूँ तो नाती-नातियों,पोतियों की बालसुलभ हरकतें मन को आह्लादित तो करती हैं पर यह आह्लाद, मोह में परिवर्तित हो इसके पहिले ही वहॉं से खिसक लेता हूँ ।मेरे छात्र जीवन के वे लेखक मित्र जिनकी बीस-पच्चीस पुस्तकें अब तक प्रकाशित हो चुकी है,चाहते हैं कि मैं,इधर बिताये गये अपने आश्रम जीवन के अनुभवो पर या अपने गुरु जी पर या अपनी राजकीय सेवा के अनुभवों पर,पुस्तकें लिखूँ ,जिसे वे अपने प्रकाशकों से छपवा देंगे,इससे मेरी जड़ता भी टूटेगी और समाज को मेरे अनुभवों का लाभ भी मिलेगा ।जैसे ही मेरा मन,इसके लिए तैयार होने लगता है, तो अन्दर से आवाज़ आती है कि तेरी यह सहमति कहीं यश पाने की कामना से ग्रसित तो नहीं है ? याद आने लगता है वह क्षण, जब अपने को समर्पित की गयी, मित्र की पुस्तक को देखकर,मैं देर तक सहलाता रहा था,छपे हुए,अपने नाम को ।
                                                       विगत दो महीनों से,जब से मैं आप सबसे जुड़ा हूँ,जमी हुई बर्फ़ के पिघलने का अहसास हो रहा है या यह कहूँ कि अन्दर का कूडाकरकट आपके ऊपर डालकर हल्का महसूस कर रहा हूं ।आभार ।  

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