Thursday 26 January 2012

गणतंत्र दिवस पर

२६ जनवरी,१९५० को मेरे देश को संवैधानिक आज़ादी प्राप्त हुई थी । बहुत सारे राष्ट्रों के संविधान का सम्यक मनन एवं चिंतन करने के पश्चात् हमारे राष्ट्र के चिंतक, मनीषियों, विधि वेत्ताओं एवं राज नेताओं ने मिलकर हमको एक सशक्त संविधान दिया था । उनके इस देय के लिये,आज के दिन मैं उन्हें कोटि-कोटि नमन करता हूँ । यह संविधान ही है जो हमारे मौलिक अधिकारों को तमाम झंझावातों के बाद भी सुरक्षित रक्खे हुए है । कितनी बार प्रयास नहीं किया गया हमारे मदांध शासकों द्वारा हमारे इन मौलिक अधिकारों को छीनने का ? अपनी सत्ता बचाने के लिये,इस राष्ट्र ने आपातकाल का एक ऐसा काल भी देखा है जो इतिहास के पन्नों में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हो गया है । उस काल में दंशित हुए व्यक्ति आज भी उसे याद कर सिहर उठते हैं । यह इस देश के गणतंत्र का ही कमाल है कि उन मदांध शासकों को, इसका खामियाजा, सत्ता से च्युत होकर चुकाना पड़ा । उस समय भी इस गण की एक इकाई पूरी दबंगई के साथ मदांध शासको को खुली चुनौती दे रही थी,
    " कौन कहता है कि आकाश में सूराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों "                        
  " कहाँ तो तय था चिरागां हर एक घर के लिये, कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिये 
     न हो कमीज तो पावों से पेट ढक लेगें, यह लोग कितने मुनासिब है इस सफ़र के लिये "
                            जब-जब भी व्यक्ति के संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों को छीनने का प्रयास किया गया है, यह गणतंत्र की ही ताकत थी कि उसने इनकी रक्षा की है । आज इतिहास से सबक न लेते हुए, फिर से इस तरह के प्रयास किये जा रहे है पर मैं आश्वस्त हूँ कि मेरे देश का गणतंत्र इतना मजबूत हो चुका है कि यह अब किसी के लिये भी संभव नहीं होगा कि वह इस देश की अस्मिता के साथ खिलवाड़ कर सके ।
                             शेष प्रभु कृपा ।
 
   

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