मानस की चौपाई सी याद तुम्हारी आयी
अंतस के सूनेपन में गूंज उठी शहनायी
कोने में दुबक गया संसय का सर्प
आँखों में बिहँस गया मनुहारा दर्प
गर्मीली दोपहरी ने अंगुली चटकायी
मानस की चौपाई सी याद तुम्हारी आयी
पूजा की थाली सा महक उठा तन
ऊषा की लाली सा चमक उठा मन
श्रमहारी संध्या ने आरती सजायी
मानस की चोपाई सी याद तुम्हारी आयी
अंतस के सूनेपन में गूंज उठी शहनायी
(विवाह के कुछ ही दिनों बाद लिखा गया गीत)
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