आज वर्षों बाद
मैंने उठायी है कलम
उस पीढ़ी के लिए
जो जब जवान होगी
बह चुका होगा
गंगा में, जाने कितना पानी
तोड़ चुके होंगे दम
जाने कितने सामाजिक मूल्य
बदल चुकी होगी
रिश्तों की भाषा
खत्म हो चुकी होगी
नैतिकता की आशा
तुम्हारा ठुमुक-ठुमुक कर चलना
और लक्ष्य तक पहुँच जाने पर
घूम-घूम कर
ताली बजाकर खिलखिलाना
निर्मल हंसी से पूरे घर को गुंजाना
बेहद चमकीली आँखों के आलोक से
सामने वाले को चौंधियाना
और-और-और
पवित्र कर देने वाली
निश्छल चंचलता
बदल चुकी होगी
एक अयाचित गाम्भीर्य में
महानगर की जन संकुलता
बेताब होगी छीन लेने के लिए
तुमसे
तुम्हारी निजता
भौतिक उपलब्धियों की अंधी दौड़ में
पिछड़ जाने का भय
आतुर होगा
छीन लेने के लिए
तुम्हारी खिलखिलाहट
तुम्हारी निश्छल चंचलता
हवा में घुली जहरीली किरकिराहट
छीन लेना चाहेगी
तुम्हारे पवित्र आँखों के आलोक को
तब-तब-तब
मेरे स्वप्नों को साकार करने के लिए
इस धरती पर अवतरित हुई
मेरी राजकुमारी
याद करना
रक्त में मिले संस्कारों को
अपनी सामाजिक परम्पराओं को
उन महानायकों को
जिन्होंने
मूल्यों की रक्षा के लिए
जीवन भर कंटकों में चलकर
अपनी मुस्कराहट से,खिलखिलाहट से
मानवता को नये आयाम दिये हैं
याद करना
उस भरत को
जिसने राजसत्ता को बना दिया था
फुटबाल
जिसने पधराया था सिंघासन पर
अपने बड़े भाई की पादुकाएं
याद करना उस राजा राम को
जिसने खाये थे
शूद्रा सबरी के जूठे बेर
जिसने पक्षियों में भी सबसे अधम पक्षी
गीधराज जटायु को दिया था अपने पिता का सम्मान
कम हो गया था उनका दुःख
पिता को मुखाग्नि न दे पाने का
जटायु का अंतिम संस्कार करके
राजा राम जिन्होंने बनाया था
समाज के सबसे पिछड़े,दलित,अधम प्राणियों को
अपना सुह्रद
जामवंत,सुग्रीव,अंगद और हनुमान
अंदर तक भीग गये थे
अकारण करुणावरुणालय के
इस अप्रतिम प्रेम से
राम
जिन्होंने दी थी धर्म की एक अभिनव व्याख्या
"परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई"
इन पंक्तियों को कंठस्थ कर लेना मेरी दुलारी
इन पंक्तियों को जीवन में उतार लेना मेरी राजकुमारी
तुम देखना
हाँ तुम देखना
मेरी रानी
समय के झंझावात
नहीं बुझा पायेगें
तुम्हारी अन्तरज्योति को
और तुम भरती रहोगी
क्षमा,दया और सहनशीलता की
प्रतिमूर्ति धरती माँ की पुत्री
जगतजननी सीता की तरह
अपने आलोक से पूरे विश्व को
अपनी शुचिता से पवित्र करती रहोगी
पूरी मानवता को
आज तुम्हारे जन्म दिन पर
यही मेरा आशीष है
मेरी बच्ची
मैंने उठायी है कलम
उस पीढ़ी के लिए
जो जब जवान होगी
बह चुका होगा
गंगा में, जाने कितना पानी
तोड़ चुके होंगे दम
जाने कितने सामाजिक मूल्य
बदल चुकी होगी
रिश्तों की भाषा
खत्म हो चुकी होगी
नैतिकता की आशा
तुम्हारा ठुमुक-ठुमुक कर चलना
और लक्ष्य तक पहुँच जाने पर
घूम-घूम कर
ताली बजाकर खिलखिलाना
निर्मल हंसी से पूरे घर को गुंजाना
बेहद चमकीली आँखों के आलोक से
सामने वाले को चौंधियाना
और-और-और
पवित्र कर देने वाली
निश्छल चंचलता
बदल चुकी होगी
एक अयाचित गाम्भीर्य में
महानगर की जन संकुलता
बेताब होगी छीन लेने के लिए
तुमसे
तुम्हारी निजता
भौतिक उपलब्धियों की अंधी दौड़ में
पिछड़ जाने का भय
आतुर होगा
छीन लेने के लिए
तुम्हारी खिलखिलाहट
तुम्हारी निश्छल चंचलता
हवा में घुली जहरीली किरकिराहट
छीन लेना चाहेगी
तुम्हारे पवित्र आँखों के आलोक को
तब-तब-तब
मेरे स्वप्नों को साकार करने के लिए
इस धरती पर अवतरित हुई
मेरी राजकुमारी
याद करना
रक्त में मिले संस्कारों को
अपनी सामाजिक परम्पराओं को
उन महानायकों को
जिन्होंने
मूल्यों की रक्षा के लिए
जीवन भर कंटकों में चलकर
अपनी मुस्कराहट से,खिलखिलाहट से
मानवता को नये आयाम दिये हैं
याद करना
उस भरत को
जिसने राजसत्ता को बना दिया था
फुटबाल
जिसने पधराया था सिंघासन पर
अपने बड़े भाई की पादुकाएं
याद करना उस राजा राम को
जिसने खाये थे
शूद्रा सबरी के जूठे बेर
जिसने पक्षियों में भी सबसे अधम पक्षी
गीधराज जटायु को दिया था अपने पिता का सम्मान
कम हो गया था उनका दुःख
पिता को मुखाग्नि न दे पाने का
जटायु का अंतिम संस्कार करके
राजा राम जिन्होंने बनाया था
समाज के सबसे पिछड़े,दलित,अधम प्राणियों को
अपना सुह्रद
जामवंत,सुग्रीव,अंगद और हनुमान
अंदर तक भीग गये थे
अकारण करुणावरुणालय के
इस अप्रतिम प्रेम से
राम
जिन्होंने दी थी धर्म की एक अभिनव व्याख्या
"परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई"
इन पंक्तियों को कंठस्थ कर लेना मेरी दुलारी
इन पंक्तियों को जीवन में उतार लेना मेरी राजकुमारी
तुम देखना
हाँ तुम देखना
मेरी रानी
समय के झंझावात
नहीं बुझा पायेगें
तुम्हारी अन्तरज्योति को
और तुम भरती रहोगी
क्षमा,दया और सहनशीलता की
प्रतिमूर्ति धरती माँ की पुत्री
जगतजननी सीता की तरह
अपने आलोक से पूरे विश्व को
अपनी शुचिता से पवित्र करती रहोगी
पूरी मानवता को
आज तुम्हारे जन्म दिन पर
यही मेरा आशीष है
मेरी बच्ची
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