Thursday 12 January 2012

गुरूजी के महाप्रयाण पर

वह दिन भी आ गया जिसको लेकर पिछले कई दिनों से मैं सशंकित था | उनके महाप्रयाण के एक दिन पहिले मुझे उन्होंने आभासित करा दिया था | मैं रात्रि में उनके बगल में लेटा हुआ था | उस रात्रि उन्होंने घंटी नहीं बजायी | जब काफी देर हो गयी तो मैं सशंकित होकर उठा, देखा तो इशारे से मुझे बुला रहे थे | मैंने पूंछा कि बैठेगें ? मना कर दिया | थोड़ी देर में मैं लेट गया | लेटने के बाद बड़ी देर तक बेचैनी रही | मन में तरह-तरह के विचार आते रहे | इसके पहिले मेरी पत्नी काफी देर तक, बच्चो की तरह उन्हें लेकर बैठी रही,फिर उन्होंने लिटाने के लिए पूंछा तो मना कर दिया | तब उन्होंने कहा कि कल सबेरे जल्दी अमित को लेने जाना है, अत:आप लेट जाये तो हम भी थोड़ी देर सो लें | बड़ी अनिच्छा पूर्वक वह लेटे थे | यह सब सोच ही रहा था कि अचानक एक विचार बड़ी तीव्रता से बार-बार आने लगा कि कहीं यह स्वामीजी की सेवा की अंतिम रात्रि तो नहीं है ? कहीं स्वामीजी ने महाप्रयाण का निश्चय तो नहीं कर लिया? कल उनके गुरु स्थान में भंडारा है | क्या भंडारे के दिन ही
यह महाप्रयाण करेंगे ? सुबह ३ बजे उठा तो वह सोते से लगे | ५बजे स्टेशन जाना था पर ट्रेन लेट हो जाने के कारण मैं उनसे अनुमति लेकर लगभग ७.३० बजे इन्हें लेकर घर आ गया | ट्रेन लगातार लेट होती गयी | लगभग ११ बजे हम वापसी के लिए सीढियाँ उतर ही रहे थे कि तभी आश्रम से फ़ोन आ गया कि हम तुरंत आश्रम पहुचें | यह सुनते ही हमे होनी का आभास हो गया और हम रोने लगे | रास्ते में दुबारा फ़ोन आ गया और हमारी आशंका सच हो गयी | किसी तरह आश्रम पहुंचे | काफी देर विलाप के बाद  कर्तव्य बोध जाग्रत हुआ और आगे का कार्य शुरू किया | सभी शिष्यों को एवं शंकराचार्य जी को सूचना दी गयी | शंकराचार्य जी आये और उन्होंने कल १० बजे तक जल समाधि के लिए निर्देशित किया तथा षोडसी जो २३ तारीख को पड़ रही थी, में अपनी अनुपलब्धता  की बात कही तो स्वामीजी के एकमात्र सन्यासी शिष्य भास्करानंद जी ने शंकराचार्य जी से उनकी उपस्थिति में ही कार्यक्रम संपन्न होना श्रेयस्कर माना | मैंने भी शंकराचार्य जी से निवेदन किया कि उनकी उपस्थिति में ही कार्यक्रम संपन्न होना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि जीवित अवस्था में मैंने कयी बार स्वामीजी से उनकी षोडसी के बारे में पूंछा था और हर बार उन्होंने यही कहा कि शंकराचार्य जी उनके गुरु है,तुम केवल उनको सूचित कर देना बाकी का कार्य वह जैसा उचित समझेगें, संपन्न करायेगें और इसमें तुम लोग अपनी कोई इच्छा भी व्यक्त मत करना | तब शंकराचार्य जी ने कहा कि वह २७ को उपलब्ध रहेगें अत: २७ को ही षोडसी और भंडारा कर लिया जाये, उन्होंने यह भी कहा कि सन्यास लेने के पहिले सारे कर्मकांड करके ही व्यक्ति सन्यास लेता है अत: सन्यासी के लिए कोई कर्मकांड का बंधन शेष नही रह जाता | उन्होंने कुछ संतो के उदाहरण भी दिए जिनकी षोडसी १६ दिनों के बाद की गयी थी अत: न तो इसमें कोई शास्त्रीय बाधा है और न ही परम्परा सम्बन्धी कोई बाधा है | मैंने और निर्देश चाहे तो उन्होंने कहा कि हम व्यवस्था कर देंगे, दो दिन बाद से यहाँ ४ पंडित बैठकर, उपनिषद, गीता, भागवत, रामायण का पाठ करेंगे जो २७ तक चलेगा, उन्होंने इस सब व्यवस्था के लिए अपने आश्रम के प्रबन्धक आचार्य श्री छोटेलाल जी को निर्देशित भी कर दिया | इस घटनाक्रम के समय स्वामी जी के काफी शिष्य उपस्थित थे | स्वामी जी के महाप्रयाण के थोड़ी देर बाद आश्रम में भगवान के नाम का संकीर्तन करने के लिए एक मंडली को बैठाल दिया गया था क्योंकि स्वामी जी को संकीर्तन से अत्यधिक लगाव था | शंकराचार्य जी के जाने के बाद जल समाधि की व्यवस्था में लोग लग गए | मैं अमित को लेकर थोड़ी देर के लिए घर आ गया | जब मैं आश्रम पहुंचा तो मुझे जानकारी दी गयी कि कुछ लोग १६ दिनों में ही षोडसी करने की बात कह रहे हैं तो मुझे क्रोध आ गया और मैंने कहा कि जब शंकराचार्य जी यह व्यवस्था दे रहे थे तब जिन्हें उनकी यह व्यवस्था शास्त्र या लोकरीति के विपरीत लग रही थी, उन्हें एतराज करना चाहिए था | अब उनके जाने के बाद इस तरह का विवाद उत्पन्न करना शोभनीय नहीं है | अगर धर्मगुरु को ही हम लोग,धर्म सिखाने लगेंगे तो इससे बड़ा अपमान तो धर्मगुरु का हो ही नहीं सकता | अगर आप लोगों को अपनी मनमानी करना है तो आप लोग अपनी मनमानी करने के लिए स्वतंत्र है | मैं स्वामी जी के समय ही यह घोषणा कर चुका था कि स्वामी जी के महाप्रयाण के बाद मैं आश्रम से कोई सम्बन्ध नहीं रक्खूँगा,अगर आप लोग चाहते हैं कि मैं षोडसी, भंडारे,यहाँ तक कि जलसमाधि में भी शामिल न होऊं तो मैं घर जा रहा हूँ, आप लोग जैसा उचित समझे, वैसा करें | मेरे क्रोध करने पर स्वामी भास्करानंद जी ने कहा कि अभी तो स्वामी जी का शरीर पड़ा हुआ है, इस समय यह विवाद उचित नहीं है | कल जल समाधि के बाद इस पर चर्चा करना उचित होगा | मैंने उनके आदेश को शिरोधार्य करते हुए अपने को शांत किया और कल दी जाने वाली जलसमाधि की व्यवस्था में लग गया | दूसरे दिन स्वामी जी की जलसमाधि बड़े ही धूमधाम के साथ, शंकराचार्य जी की उपस्थिति एवं निर्देशन में सकुशल संपन्न हो गयी | शंकराचार्य जी अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में शामिल होने के लिए ४ घंटे विलम्ब से, संगम तट से ही रवाना हो गए, मैं आश्रम आया और सभी शिष्यों को प्रसाद देकर विदा किया | स्वामी भास्करानंद जी ने यह जानकारी दी कि वह कल शंकराचार्य जी के पास गए थे और उन्होंने कुछ शिष्यों द्वारा १६ दिनों यानि कि २३ तारीख को षोडसी करने कि इच्छा की जानकारी शंकराचार्य जी को दी थी जिसपर शंकराचार्य जी ने यह कहा कि भक्तों को अपने मन की करना है तो वह अपने हिसाब से करें, फिर मैं अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के हिसाब से प्रात: ६ बजे निकल जाता हूँ, भक्त लोग अपने हिसाब से जल समाधि भी दे लें | भास्करानंद जी ने बताया कि स्वामी जी उनके अनुरोध पर ६ बजे के बजाय १० बजे जाने के लिए राजी तो हो गए थे  पर उपरोक्त कथन से उनकी नाराजिगी प्रगट हो रही थी  और इससे स्वामी जी की आत्मा को कष्ट होगा | मैं उनसे यह कहकर कि मैं स्वामी जी के दिए गए निर्देश के अनुसार जो शंकराचार्य जी आदेश करेंगे,उसी का पालन करूंगा, शाम को घर चला | मुझे अपने मेहमानों को, जो स्वामी जी की जल समाधि पर अंतिम दर्शन के लिए आये थे,क्रमश: विदा करना था कि तभी आचार्य श्री छोटेलाल जी का फ़ोन आ गया कि उनके पास तीन व्यक्ति आये थे जो कि अपने को राजकीय उच्च अधिकारी बता रहे थे और अपने को स्वामी जी का शिष्य बता रहे थे | वे लोग २३ तारीख को षोडसी करना चाहते है  | इसके लिए वह शंकराचार्य जी की सहमति चाहते है | मैंने उन्हें ६ बजे आश्रम में बुलाया है, आप भी आ जाइये तो वहीँ सबसे बातचीत करके तब शंकराचार्य जी से फ़ोन में बात कर ली जाएगी | मैंने उन्हें बताया कि मुझे अपने मेहमानों को विदा करना है, अत: शाम को मेरा आना संभव नही हो सकेगा | जब श्री छोटेलाल जी ने मेरी राय पूंछी तो मैंने कहा कि शंकराचार्य जी १७ को वापिस आ रहे हैं | उनके वापिस आने पर जैसा शंकराचार्य जी का आदेश होगा वैसे कर लिया जाएगा | यह लोग शाम को आश्रम नहीं पहुंचे | सुबह उनमे से एक सज्जन का फ़ोन आया कि वे लोग आश्रम में है, मैं भी आश्रम पहुँच जाऊँ | मैंने उस समय आश्रम पहुचंने में अपनी असमर्थता व्यक्त की और उनसे बताया कि मेरी श्री छोटेलाल जी से बात हो गयी है | १७ को शंकराचार्य जी के वापिस आने पर उनका जैसा निर्देश होगा वैसा कर लिया जायेगा | उन्होंने मेरी बात से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि यही ठीक रहेगा | इसके बाद मुझे जानकारी मिली कि उन्होंने श्री छोटेलाल जी के माध्यम से शंकराचार्य जी से फ़ोन पर बात कर ली है | फिर कुछ लोगो ने मुझे फ़ोन करके बताया कि वे लोग अन्य लोगो से फ़ोन करके या मिलकर ५००० रूपये की सहयोग राशि मांग रहे है और यह कह रहे हैं कि १० लोगो से यह सहयोग राशि लेकर स्वामी जी कि षोडसी २३ को कि जायेगी | मुझे इस बात से अत्याधिक दुःख हुआ | इन तीनो में से कोई भी ऐसा नहीं था जो अकेले ही षोडसी न कर सके | स्वामी जी ने अपने पूरे जीवन में  कभी किसी से किसी प्रकार की अपेक्षा नहीं की थी | लोग पैसा लेकर आते थे और आश्रम में भंडारा करना चाहते थे पर स्वामी जी, पात्रता देखकर ही उसका प्रस्ताव स्वीकार करते थे | एक नगरसेठ को मेरे सामने वे मना कर चुके थे | स्वामी जी के कई बार इलाज के भुगतान के समय, इन्ही लोगो ने, भुगतान में सहयोग करना चाहा तो स्वामी जी ने इशारे से मुझे भुगतान करने के लिए निर्देशित किया | उन्होंने मेरी माता जी की ही तरह मुझे ही यह सेवा प्रदान की | यह प्रभु की मेरे उपर अतिशय कृपा का प्रतीक है | मैं प्रभु की इस कृपा से इतना अभिभूत हूँ कि उस अकारण करुणावरलाणय ने मुझे इस लायक समझा | एक निस्पृह कर्मयोगी की षोडसी चंदे से की जा रही है, इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है ? जिस नगरसेठ को स्वामी जी ने कभी पसंद नहीं किया वह उनके षोडसी में सन्यासियों को देने के लिए वस्त्र ला रहा है | धन्य है स्वामी जी के यह तथाकथित भक्त | प्रभु इन्हें सद्बुद्धि और सद्गति प्रदान करे | यह तीनो दो दिन बाद मेरे घर,२३ तारीख के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए, कहने के लिए, आये थे | मैंने १७ को शंकराचार्य जी के वापिस आने पर, उनसे दिशा निर्देश प्राप्त कर, वैसा ही करने का अपना निश्चय उन्हें बता दिया था | मेरे यह सब लिखने का उद्देश्य किसी को आहत करना नहीं है | स्वामी जी जब तक थे मैं उनसे अपने मन की व्यथा कहकर उनसे दिशानिर्देश प्राप्त कर,हल्का हो जाता था | उनके जाने के बाद मैंने अपने को अपने ही कमरे में बंद कर लिया है और अपने मन को हल्का करने के लिए यह सब लिख रहा हूँ | इस प्रकरण में दो बातें छूट गयीं हैं | एक तो यह कि स्वामी जी का मन और मस्तिष्क अंतिम स्वांस तक स्वस्थ एवं प्रसन्न रहा और दूसरी बात यह कि स्वामी जी की शोभा यात्रा में एक नंदी, आगे-आगे संगम तक नेतृत्व करता रहा | स्वामी जी शंकर स्वरुप थे अत: नंदी महाराज को तो अगवानी करनी ही थी | शेष प्रभु कृपा |

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