Tuesday 15 December 2015

शास्त्रों की जीवन में उपयोगिता ।

स्थान - अपर-श्रमायुक्त कार्यालय, कानपुर (उ०प्र०) में चल रही क्षेत्रीय श्रम अधिकारियों की मासिक बैठक ।
वर्ष - १९९३
दृश्य प्रथम :- हर मासिक बैठक की तरह, अपर-श्रमायुक्त महोदय, अधीनस्थो की मिजाजपुर्सी अपने स्वाभावानुसार  (जिसमें अशालीन् शब्दों का प्रयोग स्वाभाविक गति से करना अनिवार्य था और जिसके कारण रक्तचाप से पीड़ित अधीनस्थ,रक्तचाप की दुगनी मात्रा में औषधि लेकर ही, बैठक कक्ष में प्रवेश का साहस कर पाते थे ।) करके हल्के मूड में आ चुके थे ।

दृश्य द्वितीय :- चाय-नास्ते का दौर,पूरी उन्मुक्तता के साथ, चलायमान था कि तभी एक अधीनस्थ ने एक अक्षम्य अपराध कर डाला और उसका अक्षम्य अपराध यह था कि उसने पूर्व अधिकारी के श्रम क़ानूनों के गहन ज्ञान की प्रशंसा करने की गुस्ताखी कर डाली थी ।

दृश्य तृतीय :- "क्या बकवास कर रहे हो ? किस नीच की प्रशंसा कर रहे हो ? वह साला जिसको रोज़ शराब,कबाब और शबाब चाहिए, उसे तुम ज्ञानी बता रहे हो लगता है तुम भी सरुऊ उसी लाइन के हो । जाओ उसी के पास,यहॉं हमारे पास क्या कर रहे हो ? साला टिकियाचोर को ज्ञानी बताता है ।" अधीनस्थ सिर झुकाए मन ही मन सोच रहा था कि यह हो क्या गया ? उसने बहुत कोशिश की पर ज्ञान और शराब,कबाब,शबाब के अन्तर-सम्बन्धों की गुत्थी सुलझाने में सफल न हो सका । उसकी दृष्टि समाधान की तलाश करती-करती मेरे चेहरे पर आ टिकी । मेरे चेहरे पर स्मित हास्य का लास्य देख कर, वह तिलमिला गया पर वातावरण ऐसा था कि उसके पास ख़ून का घूँट पीकर,बैठक के ख़त्म होने के इन्तज़ार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था ।

दृश्य चतुर्थ :- मैं बैठक समाप्ति के बाद अपने कक्ष में ठीक से बैठ भी नहीं पाया था कि वह धड़धड़ाते हुए आया और रोष के साथ बोला,"आपके हास्य का कारण जानने आया हूँ ? आपसे मुझे इस व्यवहार की उम्मीद नहीं थी ।" मैंने कहा,यार बैठो तो सही ।कारण भी बताऊँगा और तुमको कुछ मिष्ठान्न भी खिलाऊँगा । मिष्ठान्न उसकी कमज़ोरी थी यह मुझे मालूम था । मिष्ठान्न के नाम से उसका पारा कुछ नीचे आया । मिष्ठान्न खाते-खाते वह सामान्य हो गया था । तब मैंने उससे कहा कि अगर तुमने बाल्मीकि रामायण का परायण किया होता तो तुमने यह ग़लती न की होती, जिसके कारण बैठक में तुम्हें ज़लील होना पड़ा ।वह फिर उखड़ने लगा और बोला कि क्या ज्ञानी की प्रशंसा करना अपराध है और इस घटना का बाल्मीकि रामायण से क्या सम्बन्ध है ? मैंने कहा प्रशंसा करना अपराध नहीं है पर प्रशंसा के लिए, पात्र,काल और परिस्थिति का ज्ञान होना आवश्यक है और इस ज्ञान का सम्बन्ध बाल्मीकि रामायण से है । राम वन गमन के प्रसंग में दो-तीन श्लोकों में राम सीता को समझाते हुए कह रहे हैं कि सीते मेरे वन  गमन के पश्चात् तुम मेरी चर्चा से बचना और मेरी प्रशंसा तो कदापि मत करना क्योंकि सत्ता में बैठा हुआ व्यक्ति अपने समक्ष दूसरे की प्रशंसा  सहन नहीं कर पाता ।यहसुनकर वह हँसते हुए चला गया और मैंने चैन की सॉस ली ।

 

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