Thursday 3 December 2015

क़रीब ढाई महीने बाद आज आपसे मुख़ातिब हूँ । इस लम्बे अन्तराल का कारण मैं स्वंय हूँ । क्षात्र जीवन में लिखने का व्यसन था  । राजकीय सेवा में आने के बाद लगा कि अभिलाषित ज़िन्दगी न जी पाने के बाद भी, आदर्शवादी लेखन करना, लेखनधर्मिता के साथ अन्याय होगा, अत: सायास लेखन बन्द कर दिया । 
सेवानिवृत्ति के समय बच्चों द्वारा लैपटॉप भेंट किये जाने पर और उस समय अपने गुरू जी की गम्भीर अस्वस्थता के कारण,अत्यधिक मानसिक तनाव को कम करने के लिए फिर से अपनी पीड़ा की अभिव्यक्ति के लिए, लेखनी की शरण में जाना पड़ा । उनके विष्णुलोक गमन के बाद, जीवन निरर्थक लगने लगा । जीवन का कोई उद्देश्य शेष न रहा । अपनी इस जड़ता को तोड़ने के लिए, लगातार भ्रमण करता रहा पर सफलता न मिली । चार वर्षों तक अपने आप से भागता रहा । जीवनसाथी के ज़ोर देने पर फिर से लेखन की शरण में गया । चार-पॉंच महीने क़रीब सक्रिय रहा, एक दिन प्रात:काल अचानक एक विचार दिमाग़ में कौंधा कि कहीं यह सक्रियता, "लाईक" और "सकारात्मक टिप्पणी" देखने की सुखद वासना का परिणाम तो नहीं है ? जितना इस पर चिन्तन किया, यह विचार दृढ़ होता गया । "आई पैड" सहधर्मिणी को समर्पित कर मौन में चला गया ।
इस मौन के टूटने के पीछे कारण यह है कि २५ नवम्बर को फिर से शुरू होने वाली यात्रा,अस्वस्थता के कारण स्थगित हो गयी है । शरीर में ज़्यादा कूड़ा-करकट इकट्ठा हो जाने पर शरीर अस्वस्थ हो जाता है,इसलिए इसकी सफ़ाई का कार्य चिकित्सकों को देकर निश्चिन्त हो गया हूँ । दिमाग और मन के ऊपर बढ़ने वाले कूड़े के भार का कुछ हिस्सा आपके ऊपर डालकर हल्का होने का प्रयास कर रहा हूँ ।देखिए कितनी सफलता मिलती है ? 

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