जब बच्चे छोटे होते हैं और कुछ ऊट पटांग हरकते करते है तो उनकी हरकते देखकर, गुरु, पिता और माता का मन प्रसन्नता से भर जाता है और वे आने-जाने वालों को भी उनकी हरकते बता कर अपनी प्रसन्नता को दुगणित कर लेते है । माता-पिता बच्चों का इंतजार करते है कि कब वह विद्यालय से वापिस आवें और अपनी दिन भर की कारगुजारियों को उन्हें बतायें जिसे सुनकर वे प्रसन्न होते हैं । माता-पिता भले ही कितने व्यस्त क्यों न हो पर बच्चों की तोतली और निरर्थक बातें, सुनकर मन को प्रसन्न और हल्का करने का समय वे निकाल ही लेते हैं । पर वही बच्चे जब खुद माता-पिता बन जाते हैं तो वह भी इतिहास को दोहराते है पर एक इतिहास दोहराना वह भूल जाते है । वह यह भूल जाते है कि उनके माता-पिता ने जितना समय उन्हें दिया था, उतना ही समय उन्होंने अपने माता-पिता को भी दिया था । मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरे एक मित्र की माताजी जब स्कूल से थकी-हारी घर आती थीं तो मेरा मित्र हम लोगो को छोडकर तुरंत बाहर की तरफ भागता था और अपनी माँ को पकड़कर कमरे में हम लोगो के पास बिठाकर, यह कहते हुए कि माँ आप बहुत थकी हुई लग रहीं है, आप बैठिये मैं आपके लिए चाय बनाकर लाता हूँ । माँ अंदर तक भीग जाती थी अपने पुत्र के लाड़ पर । आज स्थिति यह है कि तीन पीढ़ी एक साथ रह नहीं पाती । इसके बहुत सारे कारण हैं । कहीं पर आर्थिक मज़बूरी है, कहीं पर स्थान की दूरी है, कहीं पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता का भाव है, कहीं पर प्रेम का अभाव है, कहीं पर तेज भाग रही जिंदगी में और हर पल बद ल रही आधुनिकता में, पीछे न छूट जाने का भय है तो कहीं समाज का अभय है । खैर कारण कोई भी हो पर यह आज के समय का कटु सत्य है कि तीन पीढियां एक साथ नहीं रह पाती । कुछ अपवादों की बात अलग है । स्वस्थ समाज के लिए यह स्थिति बहुत अच्छी नहीं है । यदि आप गंभीरता से अपने आस-पास अवलोकन करें तो आप यह पायेगें कि तीनो पीढियां इस दंश से बुरी तरह छटपटाने के बाद भी, समाधान के प्रति उदासीन है। समाधान के लिये जिस त्याग और उदारता की आवश्यकता होगी, उसकी तलाश इस भौतिकवादी समाज में करना, मृगमरीचिका होगी ।
No comments:
Post a Comment