Monday 18 June 2012

फादर्स डे पर

मुझे नहीं है याद अपने पिता की
क्योंकि जब उन्होंने शरीर छोड़ा था
तब मैं मात्र 6 माह का था  ।
माँ के पूजा भवन में रक्खी
उनकी एकमात्र फोटो ही
मेरी स्मृतियों में जीवित है ।

और जीवित है
माँ के द्वारा पिता के विषय में दी गयी जानकारी
कि वह इतने खूबसूरत थे कि शादी में उनके दूलह रूप को देखने के लिए
उमड़ आया था पूरा गाँव
कि मेरे पिता जितने शरीर से खूबसूरत थे
उससे भी ज्यादा खुबसूरत था
उनका मन ।
मैं आभारी हूँ
मैं अपने उस पिता का
जो मुझे इस धरती पर लाये थे ।
रक्त में मिले संस्कारों के लिए
मैं
कभी भी ऋण मुक्त नहीं हो सकता ।
पिता के जाने के बाद
मेरे सबसे बड़े भाई
जिनकी उम्र उस समय 12 वर्ष की थी
ने
कभी भी नहीं महसूस होने दिया
पिता का अभाव ।
माँ और बड़े भाई के रहते
मैंने कभी भी नहीं महसूस किया
अपने को अनाथ ।
हाँ
पहिले माँ और फिर बड़े भाई के जाने के बाद
मैंने पहिली बार महसूस किया था
अपने को अनाथ ।
इतना बड़ा शून्य मेरी जिन्दगी में आ गया था
कि जीवन निरर्थक लगने लगा था ।
पर तभी मेरे अकारण करुणा वरुणालय प्रभु
ने
मेरे जीवन के उत्तरार्ध में
भेज दिया गुरु के रूप में
मेरे उस पिता को जो मुझे 6 माह की उम्र में
छोडकर चले गये थे ।
मेरे प्रभु ने
ब्याज के साथ लौटाया था मेरे पिता को ।
जीवन भर पिता के वात्सल्य के लिये
तरसा मेरा मन
आप्लावित हो गया था
गुरु रूपी पिता के
अकथनीय,अतुलनीय
उस अनुराग से
जिसमें
पुत्र की गलतियों को
क्षमा करते हुए
वात्सल्य की कभी न खत्म होने वाली  शीतल वर्षा थी ।
और थी अपने शिष्य को
जीवन की सार्थकता का बोध करा देने की
आकुलता और व्याकुलता ।
जीवन के यह 8 वर्ष
यदि मेरे जीवन से निकाल दिए जाये
तो शेष शून्य ही बचेगा ।
अब
उनके जाने के बाद
अपने प्रभु से
समय-समय पर
पूंछता रहता हूँ
कि जब उनसे बिछड़ना ही मेरा प्रारब्ध था
तो उनसे मिलवाया ही क्यों था ?
                                                                                                             शेष प्रभु कृपा ।

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