Friday 27 April 2012

जीवन में व्यवहारिक नियमों का पालन अति आवश्यक है |

"सीय-राम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी" या "सब देखहिं प्रभुमय जगत केहि सन करहिं विरोध" जब तक जीव इस भाव भूमि पर स्थापित न हो जाये तब तक उसे जीवन में व्यवहारिक नियमों का पालन अवश्य करना चाहिये, नहीं तो उसका जीवन नरक हो जायेगा । कार्यालय में यदि आप सहकर्मियों में अपने प्रभु का दर्शन करने लगे तो स्वाभाविक है कि आप न तो उनसे कड़े शब्दों का प्रयोग ही कर पाएंगे और न ही उनकी लापरवाही के प्रति कोई दंड ही दे पाएंगे । प्रभु को भी लीला के लिए ही सही यह कहना पड़ा,"विनय न मानत जलधि जड़, गये तीन दिन बीत । बोले राम सकोप तब, भय बिन होय न प्रीति ।"अम्मा कहा करती थी कि प्रेम मन की गहराइयों  में छिपा कर रखना चाहिए ऐसा मेरे पिताजी कहा करते थे । अनुशासन बनाये रखने के लिये, हर रिश्ते में एक फासला होना जरुरी है । अपने वक्त के एक  महान संत ने यह कहा था कि शिष्य को अपने गुरु के बहुत नजदीक नहीं जाना चाहिए, हमेशा दोनों के बीच में एक फासला आवश्यक है । गुरु यदि शिष्य को मुहँ लगा लेता है तो किसी न किसी दिन शिष्य के द्वारा, अनचाहे ही गुरु का अपमान हो जायेगा । यह बात सभी रिश्तों में लागू होती है । चाहे वह पति-पत्नी का रिश्ता हो चाहे पिता-पुत्र का, पिता- पुत्री का, चाहे सास-बहू,श्वसुर-बहू का , चाहे मालिक-नौकर या राजा और प्रजा का हो, हर रिश्ते की गरिमा बनाये रखने के लिये उनके बीच एक फासला होना बहुत जरुरी है । सुनने में यह बात बहुत अच्छी लगती है कि बहू को अपनी बेटी की तरह ही समझना चाहिए । आप लाख उसे बेटी समझ लें पर वह शायद ही आपको अपने माता-पिता की तरह  अन्तरंग समझ सके । एक प्रबुद्ध महिला ने एक बार कहा था कि यह कोशिश आप करते ही क्यों है ? दोनों रिश्ते अपनी-अपनी जगह महत्वपूर्ण है । दोनों को अलग-अलग  ही रहने दें । यही बात पुत्र और दामाद के रिश्ते में भी लागू होती है । दामाद को पुत्र की तरह प्यार तो दो पर उससे पुत्र की तरह अपेक्षा मत करो ।
                                                                                               शेष प्रभु कृपा 

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