Friday 29 July 2011

मैं तो कुत्ता राम का मोतिया मेरा नाम

मैं  तो कुत्ता  राम का मोतिया मेरा नाम | यह कबीर के दोहे का एक भाग है | यह एक भक्त के सम्पूणॆ समर्पण की स्थिति है | अपने प्रभु की इच्छा का ही पालन | कुत्ते की तरह अपने प्रभु का अनुसरण करना | गीता का यह श्लोक "सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणम् व्रज, अहम् त्वाम् सर्व पापेभ्यो मोक्षष्यामि मा शुचः" जिसमे प्रभु डिंडिम घोष करते हैं कि यह जीव सब कुछ छोड़कर केवल मेरी शरण मे आ जाये तो मैं उसे सारे पापो सें मुक्त कर दूंगा | प्रभु के इस स्पष्ट कथन के बाद भी जीव इस पर विश्वास नहीं करता | हम भगवान पर तो विश्वास करते हैं किन्तु भगवान की वाणी पर या शास्त्र पर नहीं | यही मानव जीवन की विडम्बना है | "जाही विधि राखे राम ताही विधि रहिये, सीता राम सीता राम कहिये " जीव का इस स्थिति  में पहुँचना ही अपने प्रभु का कुत्ता हो जाना है | और जब आप यहाँ तक पहुँच जायेंगे तब आपकी चिंता भगवान  खुद करेंगे | समर्पण जब इस सीमा तक हो जाता है तब मालिक या प्रभु आपसे विमुख रह ही नहीं सकते |अपने जीवन की एक घटना  इस संबंध में बताना चाहूँगा मेरे अधिकारी मुझसे नाराज थे,उसी समय मेरी मुलाकात एक संत से हुई । मैने उनसे अपनी समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे समर्पण मे कमी है | मैने उनका प्रतिवाद करना चाहा तो उन्होने पूरी दृढ़ता से कहा कि यह संभव ही नहीं है कि समर्पण पूरा हो और सामने वाला नाराज रह सके, कहीं न कही कोई कमी जरुर है | उनका यह कथन लौकिक और पारलौकिक, दोनों जीवन पर पूरी तरह सटीक बैठता है | जीवन में एक बार इस बात को उतार कर देखो , जीवन सार्थक हो जायेगा | जब तक किनारे बैठकर लहरों को देखते रहोगे तब तक न तो तैरना सीख पाओगे और न ही प्रभु की शीतलता रूपी कृपा का ही अनुभव कर सकोगे | एक बार, केवल एक बार अपने को लहरों को सौंप कर देखो । निश्चिंत रहो , लहरें तुम्हे  अपनी बाहोँ मे लेकर ,तुम्हे झूले का आनन्द देती किनारे तक अवश्य पहुँचा देंगी |
शेष प्रभु कृपा |

1 comment:

  1. i agree fufaji.....kbhi kabhi....paristhiya hti h jab man ko samjana muskil ho jata h....us samay bs ek chz saath dti h vo bs apne iswar pe pura vishwas

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