बचपन लुका-छिपी खेलते-खेलते
एक बार ऐसे छिपा कि फिर ढूढ़े नहीं मिला
जवानी मुंह फेरकर टाटा बाय-बाय करके
छल करके
कब चली गयी ? पता ही नहीं चला ।
कमबख्त ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा ।
अब यह सबसे सयाना बुढ़ापा
बिन बुलाए अनचाहे मेहमान सा
पलथी मार कर जम कर बैठ गया है
कहता है कि बचपन और जवानी को याद करके
चाहे जितना रोओ-गाओ,चीखो-चिल्लाओ
मैं तुमको लिए बगैर टलने वाला नहीं हूँ ।
अब मुझे लगता है
कि मैंने क्यों नहीं सुनी तेरी बात ?
तूने कितनी बार शास्त्रों के,महापुरुषों के द्वारा
मुझे यह समझाने का प्रयास नहीं किया
कि यह बचपन-जवानी-बुढ़ापा और यह शरीर भी
मतलब के साथी हैं
तेरे माध्यम से सांसारिक भोगों का ऐश्वर्य भोग लेने के बाद
मुंह फेर कर ऐसे चले जाएंगे कि तुम्हे जानते ही नहीं ।
मैं जानता हूँ
कि तुम जन्म के पहले,संसार में आने के बाद
और संसार से जाने के बाद
एक तुम्ही हो जो हर पल मेरे साथ थे,हो, और रहोगे ।
मैं यह भी जानता हूँ कि अंशी अपने अंश को
अपनी बांहो में भरने के लिए
उसे पूर्णता प्रदान करके उसके अधूरेपन के दंश से
हमेशा के लिए समाप्त करने के लिए तैयार है
बशर्ते एक बार अंशी उसे दिल से याद भर कर ले ।
अफसोस यह है कि मैं यह भी नहीं कर पा रहा हूँ
मेरे प्रभु,मेरे मालिक,मेरे बाप ।
मैंने यह भी सुना है कि तू अकारण करुणावरुणालय है
शायद तुझे कभी अपना यह विरद याद आ जाए
इसी आशा में शायद शेष सांसे पूरी कर रहा हूँ
मैं ।
एक बार ऐसे छिपा कि फिर ढूढ़े नहीं मिला
जवानी मुंह फेरकर टाटा बाय-बाय करके
छल करके
कब चली गयी ? पता ही नहीं चला ।
कमबख्त ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा ।
अब यह सबसे सयाना बुढ़ापा
बिन बुलाए अनचाहे मेहमान सा
पलथी मार कर जम कर बैठ गया है
कहता है कि बचपन और जवानी को याद करके
चाहे जितना रोओ-गाओ,चीखो-चिल्लाओ
मैं तुमको लिए बगैर टलने वाला नहीं हूँ ।
अब मुझे लगता है
कि मैंने क्यों नहीं सुनी तेरी बात ?
तूने कितनी बार शास्त्रों के,महापुरुषों के द्वारा
मुझे यह समझाने का प्रयास नहीं किया
कि यह बचपन-जवानी-बुढ़ापा और यह शरीर भी
मतलब के साथी हैं
तेरे माध्यम से सांसारिक भोगों का ऐश्वर्य भोग लेने के बाद
मुंह फेर कर ऐसे चले जाएंगे कि तुम्हे जानते ही नहीं ।
मैं जानता हूँ
कि तुम जन्म के पहले,संसार में आने के बाद
और संसार से जाने के बाद
एक तुम्ही हो जो हर पल मेरे साथ थे,हो, और रहोगे ।
मैं यह भी जानता हूँ कि अंशी अपने अंश को
अपनी बांहो में भरने के लिए
उसे पूर्णता प्रदान करके उसके अधूरेपन के दंश से
हमेशा के लिए समाप्त करने के लिए तैयार है
बशर्ते एक बार अंशी उसे दिल से याद भर कर ले ।
अफसोस यह है कि मैं यह भी नहीं कर पा रहा हूँ
मेरे प्रभु,मेरे मालिक,मेरे बाप ।
मैंने यह भी सुना है कि तू अकारण करुणावरुणालय है
शायद तुझे कभी अपना यह विरद याद आ जाए
इसी आशा में शायद शेष सांसे पूरी कर रहा हूँ
मैं ।