"चोर-चोर मौसेरे भाई, आवा सब मिल बाँट के खाई ,
ऐसन फरा लिलार कि जैसिन रानिऊ के घर मानिऊ आई "
आज दूरदर्शन में शरद यादव को बोलते देखकर अपने मित्र डॉ० अशोक त्रिपाठी की बहुत पहिले लिखी गयी कविता की उपरोक्त पंक्तियाँ याद आ गयीं | हमारे माननीय सांसद विदूषक भी हो सकते हैं, यह आज शरद यादव को देखकर लगा | मुझे लगता था कि यह ज़मीन से जुड़ा हुआ नेता है, पर आज जिस तरह से वह चल रहे जन आन्दोलन को मुट्ठीभर तमाशबीनों का आन्दोलन तथा दूरदर्शन को नींद ख़राब करने वाला डिब्बा बताकर मजाक उड़ा रहे थे और हमारे अन्य माननीय सांसद जिस तरह पागल आदमियों की तरह अट्ठहास कर रहे थे, उसे देखकर मन में इतनी तेज जुगुप्सा उत्पन्न हुई कि टीवी बंद करके, अपने को हल्का करने के लिए ब्लॉग लिखने बैठ गया | जब बैठा तो उपरोक्त पंक्तियाँ याद आयीं |इस देश को नेता और अधिकारी मिलकर किस तरह से लूट रहे है, यही इस कविता की विषय वस्तु है," चोर -चोर मौस्युर भाई | आवा सब मिल बाँट के खाई | ऐसिन फरा लिलार कि जैसे रान्दिउ के घर मानी आई |" नेता और अधिकारी दोनों का भाग्योदय इस प्रकार हुआ है जैसे किसी विधवा स्त्री को किसी विवाह आदि का निमंत्रण पाने पर होता है | शेष प्रभु कृपा |
No comments:
Post a Comment