Thursday, 11 August 2011

हंस जब भी उड़ा तब अकेला उड़ा

                   हंस जब भी उड़ा तब अकेला उड़ा"| हंस रूपी जीवात्मा जब भी उड़ता है, अकेला ही उड़ता है| जब तक वह संसाररूपी मानसरोवर में रहता है, तब तक वह "कि हंसा मोती चुगे कि लंघन करि जाए " के नियमों का पालन करते हुए जीवन जीता है | नीर-क्षीर विवेक का आ जाना ही हंस वृत्ति में पहुँच जाना है |

                     हंस वृत्ति से ऊपर की एक स्थिति है, वह है  परमहंस की स्थिति | इस स्थिति में पहुँचकर नीर-क्षीर की स्थिति से भी आदमी उपर उठ जाता है , न उसके लिए कर्मबंधन शेष रह जाता है और न ही उचित अनुचित का विचार | उसके लिए सारे बंधन समाप्त हो जाते हैं, यहाँ तक कि वस्त्रों का बंधन भी उनके ऊपर लागू नहीं होता |

                  मेरे गुरूजी भी इस समय परमहंस की स्थिति में हैं । हम अपने स्वार्थों के कारण चाहते हैं कि अभी वह कुछ दिन और संसार में रहकर हमारी शेष कामनाओं को पूरा कर दें, पर वह इन सबसे बहुत ऊपर जा चुके हैं | अब वह किसी भी अनुरोध को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं | प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि हमें वह शक्ति प्रदान करे कि हम उनके निर्णय को स्वीकार कर सकें |

शेष प्रभु कृपा |

1 comment:

  1. सुन्दर "वृत्तान्त आदरणीय।

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