Saturday, 20 August 2011

रक्त वर्षों से नसों में खौलता है, आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है

"रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
               आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है " ,

"यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ,
               मुझे मालूम है, पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा" ,

"इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो,
              जब तलक खिलते नहीं यह कोयले देंगे धुआं"

भाई दुष्यंत की आपातकाल में लिखी गयीं उपरोक्त पंक्तियाँ आज अन्ना हजारे जी के चल रहे आन्दोलन के संदर्भ में कितनी सटीक हैं | यह आन्दोलन सामान्य जनता  के मन में वर्षों से पल रहे गुस्से का  विस्फोट है | यह तो हमारा सौभाग्य है कि इसे अन्ना हजारे जैसे निस्पृह  कर्मयोगी का नेतृत्व मिला है जो निश्चित रूप से इस विस्फोटक ऊर्जा को चेतना का वह पुंज बना देंगे जिसे झुठलाना किसी भी संसद के लिए संभव नहीं हो सकेगा | काश कि यह कार्य हमारी माननीय संसद द्वारा वर्षों पहिले कर लिया गया होता तो आज हम विश्व के गिने चुने भ्रष्ट देशों में शामिल न होते | 

शेष प्रभु कृपा |

No comments:

Post a Comment