सुबह के तीन चित्र -
माँ की छाती से चिपके, बच्चों के होठों पर,
सूरज की पहली वह दूधिया किरण,
कुनकुनाहट घोल गयी,
लो सुबह हुई ।
अभी-अभी सोयीं,
बेसुध हो सपनों में खोई,
नव वधुओं के गालों पर,
सूरज की पहली वह नटखटी किरण,
चुटकी सी काट गयी,
बेसुध सी काया में हड़बड़ी हुई,
लो सुबह हुई |
रात भर, ऊँघते, जागते, कराहते,
वृद्धों के कानों में,
सूरज की पहली वह केसरिया किरण,
मानस की चौपाई बोल गयी,
आभा सी फैल गई,
लो सुबह हुई, सुबह हुई, सुबह हुई |
The pleasure which I got after listening these lines from you directly after sitting next to you in Allahabad, is missing here...
ReplyDeletebut still.. Something is always better than nothing... Recalling that day itself is great feeling...
Jaahi vidhi rakhe ram taahi vidhi rahiye... Sita Ram Sita Ram, Sita Ram kahiye...