"कबिरा काजर रेख हू अब तो दई न जाय ।
नैना माहि तू बसै दूजा कहां समाय ?"---कबीर दास ।
कबीरदास जी कहते हैं कि अब तो आंखों में काजर भी नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि आंखों में तो तू बसा हुआ है , वहां दूसरे के घुसने के लिए स्थान ही कहाँ है ?
अर्थात् जब जीव की आंखों में प्रभु का वास हो जाता है,तब उनकी आंखों में संसार का प्रवेश सम्भव नहीं है । या व्यक्ति जिस रंग का चश्मा लगा लेता है, उसे संसार, उसी रंग का दिखाई पड़ने लगता है । जिसकी आंखों में प्रभु का वास हो जाता है,उसे स॔सार की हर वस्तु में प्रभु के ही दर्शन होते हैं ।
"सीय-राम मय सब जग जानी,करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी ।" --तुलसीदास ।
मैं सारे संसार को सीता-राम का ही स्वरूप जान कर, अपने दोनों हाथ जोड़कर कर प्रणाम करता हूँ ।
इस स्थिति में पहुँच कर जीव के सारे द्वन्द्व समाप्त हो जाते हैं और वह परमानंद को प्राप्त हो जाता है । पर यह स्थिति प्रभु की कृपा से ही प्राप्त होती है ।
"अतिशय कृपा राम कै होई, सो यहि मारग पावै कोई ।"
नैना माहि तू बसै दूजा कहां समाय ?"---कबीर दास ।
कबीरदास जी कहते हैं कि अब तो आंखों में काजर भी नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि आंखों में तो तू बसा हुआ है , वहां दूसरे के घुसने के लिए स्थान ही कहाँ है ?
अर्थात् जब जीव की आंखों में प्रभु का वास हो जाता है,तब उनकी आंखों में संसार का प्रवेश सम्भव नहीं है । या व्यक्ति जिस रंग का चश्मा लगा लेता है, उसे संसार, उसी रंग का दिखाई पड़ने लगता है । जिसकी आंखों में प्रभु का वास हो जाता है,उसे स॔सार की हर वस्तु में प्रभु के ही दर्शन होते हैं ।
"सीय-राम मय सब जग जानी,करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी ।" --तुलसीदास ।
मैं सारे संसार को सीता-राम का ही स्वरूप जान कर, अपने दोनों हाथ जोड़कर कर प्रणाम करता हूँ ।
इस स्थिति में पहुँच कर जीव के सारे द्वन्द्व समाप्त हो जाते हैं और वह परमानंद को प्राप्त हो जाता है । पर यह स्थिति प्रभु की कृपा से ही प्राप्त होती है ।
"अतिशय कृपा राम कै होई, सो यहि मारग पावै कोई ।"
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