यह एक भौतिकवादी दर्शन है जो पाश्चात्य दर्शन से मेल खाता है जो खाओ-पिओ और मौज करो पर विश्वास करता है । भारतीय मनीषा इसके विपरीत है । इसको निम्न पंक्तियों से समझा जा सकता है ।
"एहि तन कर फल विषय न भाई,स्वर्गहु स्वल्प अन्त दुखदाई ।
नर तन पाइ विषय मन देहीं,पलट सुधा ते विष लेहीं ।
ताहि कबहुं भल कहहि न कोई,गुंजा ग्रहइ परस मनि खोई ।"----मानस
अर्थात् इस मनुष्य शरीर का फल यह नहीं है कि उसे विषयों के भोग में लगाया जाए । स्वर्ग के सुख भी अल्प होते हैं और उनका अन्त दुखदाई होता है । नर तन पाकर उसे विषयों में लगाना इसी तरह है कि अमृत को छोड़ कर विष ग्रहण करना या पारस मणि को त्याग कर गुंजा (घुघुंची) को ग्रहण करना ।
अब यह तुम्हारे विवेक पर निर्भर करता है कि तुम्हें कौन सा मार्ग ग्रहण करना है ?
"एहि तन कर फल विषय न भाई,स्वर्गहु स्वल्प अन्त दुखदाई ।
नर तन पाइ विषय मन देहीं,पलट सुधा ते विष लेहीं ।
ताहि कबहुं भल कहहि न कोई,गुंजा ग्रहइ परस मनि खोई ।"----मानस
अर्थात् इस मनुष्य शरीर का फल यह नहीं है कि उसे विषयों के भोग में लगाया जाए । स्वर्ग के सुख भी अल्प होते हैं और उनका अन्त दुखदाई होता है । नर तन पाकर उसे विषयों में लगाना इसी तरह है कि अमृत को छोड़ कर विष ग्रहण करना या पारस मणि को त्याग कर गुंजा (घुघुंची) को ग्रहण करना ।
अब यह तुम्हारे विवेक पर निर्भर करता है कि तुम्हें कौन सा मार्ग ग्रहण करना है ?
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