Thursday, 1 December 2011

कुछ पुरानी कवितायेँ

आज पुरानी फाइलों में दो पन्ने पड़े मिल गये | यह पन्ने बहुत ही जीर्ण अवस्था में हैं ,अत: इन्हें सुरक्षित करने की दृष्टि  से,बगैर इनमे कोई संशोधन किये,उतार रहा हूँ | चूँकि कभी डायरी नहीं बनायी, इसलिये जब पीड़ा घनीभूत हो जाती थी तो उसे पन्नो में उतारकर हल्का हो जाता था | निम्नांकित कविता कागज के नैपकिन  में दिनांक १३--२००३ को अवतरित हुई है -

मैं आभारी हूँ, तुम सब का, मेरे बच्चों 
तुम सब ने मिलकर, मुझे पहुंचा दिया है
 आज से तीस साल पहिले,
तीस साल पहिले
 जब मेरी रातें बीतती थीं
 स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म में, चाय की दुकानों में
 देश को लेकर, समाज को लेकर,
 मुट्ठियाँ भींचकर चिल्लाते, तीखी बहसों में
बंधी हुई मुट्ठियाँ, तने हुए चेहरे, आज भी याद हैं मुझे |
 हम परेशान रहते थे
 घिसी-पिटी परम्पराओं से, बोर्जुआ मानसिकता से
 और कुछ भी बदलने की, कसम खा रक्खे,
 दकियानूसी  लोगो से |
 हमें परेशान कर देते थे
 रिक्शा चलाते, चाय की दुकानों में, ढाबों में,
 प्लेट धोते,
 नन्हे-नन्हे बच्चे
 जिनके हाथों में बेमुरुव्व्त वक्त ने
कॉपी , किताबों और पेंसिलों की जगह
 पकड़ा दिये थे
 हथौड़ा, पेंचकस और जूठी प्लेटें |
 बोझा ढोते वह मासूम हाथ
 अंदर तक चीर जाते थे  हमें |
 और हमें लगता था
  कि हम नोच डालें, सफेदी का नकाब ओढ़े, चेहरों को
  कि हम तोड़ डालें, वह सारी की सारी परम्पराएँ
  जो इन्सान को इन्सान नहीं बनने देती |
  रौंद डालें, सारी की सारी धरती, अपने पैरों से
  अपने रक्त से, अपने पसीने से
  और अपने हाथों से बनाये, अपना भारत
  अपने जवान सपनों का भारत
  जो
  मंदिर के घंटे और मस्जिद की अजान के साथ जागे
  सुबह होते ही, सड़कों में गूंजने लगे
  किताबों  का बस्ता सम्हालते 
बच्चों  की धमाचौकड़ी, भागमभाग
आँगन के तुलसीचौरा पर जल चढ़ाती
 दुलहिनो के पायलों की रुनझुन
  हवाओं में गूंजे
  रामायण की चौपाईयां और कुरान की आयतें
  खेतों में बैलों के गले में बंधी घंटियों की टन-टन |
  पर नहीं कर पाया
  मैं
  यह सब
  व्यवस्था को गाली देने वाला ही
  बन गया  इस सड़ी-गली व्यवस्था का एक अंग
  बंधी हुई मुट्ठियाँ पसर कर रह गयीं
  चाहे-अनचाहे के सामने
  और तब मैंने तोड़कर, फ़ेंक दी थी
  कलम
  पर आज तुम सबसे मिलकर
  फिर से कलम उठाने का, हो आया मन
  अन्तस में फिर से घुमड़ने लगे हैं
  प्यार और शांति के बादल
 आँखों  में फिर से पलने लगे हैं
  सपने ,
  सपने
  बच्चों  की निर्मल खिलखिलाहट के सपने
  खनखनाते कंगनों के सपने
  रामायण और कुरान पढ़ते
  तनाव रहित झुर्रीदार चेहरों के सपने
  क्या तुम पूरा कर पाओगे,
  मेरे इन हसीन सपनों  को, मेरे बच्चों  ?



No comments:

Post a Comment