सियाराम मैं सब जग जानी ,करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी
पूरे संसार में अपने आराध्य के ही दर्शन करना, बिना अहंकार के विगलन के संभव ही नहीं है |विनय पत्रिका के एक पद में मोह दसमौलि तदभ्रात अहंकार को कहा गया है | अथॊत् रावन मोह का प्रतीक है, कुम्भकरण अहंकार का प्रतीक है | इसी में आगे मेघनाथ को काम का प्रतीक कहा गया है| मेघनाथ का वध लखनलाल द्वारा किया जाता है तथा रावन और कुम्भकरण का वध श्रीराम द्वारा किया जाता है | लखनलाल को जीवों का आचार्य कहा गया है,यानि लखनलाल जीव के प्रतीक है | जीव काम पर तो विजय प्राप्त कर सकता है पर मोह और अहंकार केवल प्रभु द्वारा ही नष्ट किये जा सकते हैं | अथॊत अहंकार का विगलन प्रभु की कृपा से ही संभव है, पुरूषार्थ से नहीं । प्रभु की कृपा से जब अहंकार का विगलन हो जायेगा तब जीव "सब प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं विरोध " की भावभूमि पर पहुँच पायेगा | और यह संभव हो पायेगा प्रभु श्रीराम की कृपा से । इसलिए "सुमिरिअ रामहिं गायहिं रामहिं " को जीवन में उतार लिया जाये तो जीवन सार्थक हो जायेगा |
शेष प्रभु कृपा |
Dear Papa,
ReplyDeleteFirst of all many many congratulations for ur first blog! Keep blogging! It will be a feast for us and our hungry souls!
Love
Dolly
charansparsh fufa ji'
ReplyDeletekeep blogging...........
with regards
manu
अति सुन्दर
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDelete