Monday, 25 July 2011

सियाराम मैं सब जग जानी ,करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी



सियाराम मैं सब जग जानी ,करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी
पूरे संसार में अपने आराध्य के ही दर्शन करना, बिना अहंकार के विगलन के संभव ही नहीं है |विनय पत्रिका के एक पद में मोह दसमौलि तदभ्रात अहंकार को कहा गया है | अथॊत् रावन मोह का प्रतीक है, कुम्भकरण अहंकार का प्रतीक है | इसी में आगे मेघनाथ को काम का प्रतीक कहा गया है|  मेघनाथ का वध लखनलाल द्वारा किया जाता है तथा रावन और कुम्भकरण का वध श्रीराम द्वारा किया जाता है | लखनलाल को जीवों का आचार्य कहा गया है,यानि लखनलाल जीव के प्रतीक है |  जीव काम पर तो विजय प्राप्त कर सकता है पर मोह और अहंकार केवल प्रभु द्वारा ही नष्ट किये जा सकते हैं | अथॊत अहंकार का विगलन प्रभु की कृपा से ही संभव है, पुरूषार्थ से नहीं । प्रभु की कृपा से जब अहंकार का विगलन हो जायेगा तब जीव "सब प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं विरोध " की भावभूमि पर पहुँच पायेगा | और यह संभव हो पायेगा प्रभु श्रीराम की कृपा से । इसलिए "सुमिरिअ रामहिं गायहिं रामहिं " को जीवन में उतार लिया जाये तो जीवन सार्थक हो जायेगा |
शेष प्रभु कृपा |



























4 comments:

  1. Dear Papa,

    First of all many many congratulations for ur first blog! Keep blogging! It will be a feast for us and our hungry souls!

    Love
    Dolly

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  2. charansparsh fufa ji'
    keep blogging...........
    with regards
    manu

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  3. अति सुन्दर

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