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आज शिव और पार्वती का विवाह पर्व है, जिसे पूरा देश उल्लास, श्रद्धा और विश्वास के साथ मना रहा है । इस पर्व पर मैं सभी को अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ ।
रामचरितमानस के बालकाण्ड के द्वितीय श्लोक में, तुलसीदास जी ने माता पार्वती और भगवान शिव को, श्रद्धा और विश्वास के रूप में प्रतिस्थापित किया है । इस युग्म के बग़ैर यानि कि जीवन में श्रद्धा और विश्वास के अभाव में, आप अपने अन्दर स्थित ईश्वर या अपने आत्मस्वरूप का दर्शन नहीं कर सकते, भले ही आपने भौतिक सिद्धियों की उपलब्धि क्यों न कर ली हो ?
"भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्त:स्थमीश्वरम्"
(श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वन्दना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्त:करण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते ।)
आइए श्रद्धा और विश्वास के इस विवाह पर्व पर हम भी संकल्प लें कि हम भी अपने जीवन में इनका अवतरण करें जिससे हम भी अपने आत्मस्वरूप का दिग्दर्शन कर सकें ।
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